रुद्राक्ष का अर्थ, रुद्राक्ष धारण करते समय किन बातों का रखें ध्यान
रुद्राक्ष का अर्थ: रुद्राक्ष (Rudraksha) मूलतः संस्कृत भाषा का एक शब्द है,जो की रूद्र +अक्सा संस्कृत के रुद्र+अक्ष के दो शब्दों से मिलकर बना है। रुद्र भगवान शिव के उपनाम में से एक है एवं अक्सा का शब्दिक अर्थ होता है आंसुओं की बूंद, अर्थाथ रुद्राक्ष का तात्पर्य भगवान शिव के आंसुओं से है।
रुद्राक्ष भोलेनाथ की अमूल्य देन तथा शिव का वरदान है रुद्राक्ष। इसकी माला बनाकर पहनने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। रुद्राक्ष मुख्यरूप से एक फल की गुठली है,जिसका उपयोग आध्यत्मिक उन्नति प्राप्त करने में किया जाता है। रुद्राक्ष एक प्रकार का बीज है जिसकी महत्ता हिन्दू सनातनी धर्म में बहुत अधिक है(विशेष रूप से शिव भक्तों में ), इसे माला में पिरोकर प्रयोग क्या जाता है।तो आइये जानते है -रुद्राक्ष धारण करते समय किन बातों का रखें ध्यान एवं धारण करने के सुझाव -
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रुद्राक्ष धारण करते समय किन बातों का रखें ध्यान
- जो खंडित हो एवं काँटों के बिना हो, उन्हें धारण न करें।
- जो रुद्राक्ष कीड़ों के खाये हुए हो, उन्हें धारण न करें।
- जो देखने में रुद्राक्ष जैसे न लगतो हों, उन्हें धारण न करें।
- जो छिद्र करते हुए फट गये हों, उन्हें न पहनें।
- जाँच कर लें कि रुद्राक्ष बिल्कुल ठीक है या नहीं, क्योंकि बाजार में बनावटी रुद्राक्ष भी मिलते हैं।
- परीक्षण कर लें कि रुद्राक्ष नकली तो नहीं है, यदि नकली होगा तो पानी में तैरने लगेगा और असली होगा तो पानी में डूब जायेगा।
- जप आदि कार्यों में छोटा रुद्राक्ष ही विशेष फलदायक होता है और बड़ा रुद्राक्ष रोगों पर विशेष फलदायी माना जाता है।
- रुद्राक्ष के विषय में धारक को किसी प्रकार के भ्रम में न पड़कर श्रद्धा एवं विश्वास के साथ धारण करना चाहिए क्योंकि रुद्राक्ष महापुरुषों द्वारा परिलक्षित है। लाभ अवश्य होगा। रुद्राक्ष धारण करने के ६ सप्ताह के भीतर जिस कार्य के लिए आप इसे धारण करेंगे वह कार्य हर हालत में पूर्ण होगा, यह बात अनुभव द्वारा परिलक्षित है।
- रुद्राक्ष अमूल्य वस्तु है। इसे कहीं से भी प्राप्त करके परीक्षा करके ( नकली-असली ) गंगा अथवा किसी भी पवित्र नदी के जल या तीर्थ स्थान के जल से धोकर पाँच बार “ओम नमः शिवायः " मन्त्र का उच्चारण करके धारण करना चाहिए।
रुद्राक्ष धारण करने के सुझाव
- रुद्राक्ष शिवलिंग से स्पर्श कराकर धारण करना चाहिए। सोने अथवा चाँदी के तारों में पिरोकर इसकी माला धारण करनी चाहिए, इसको लाल धागे में प्रयोग कर सकते हैं।
- रुद्राक्ष धारण करते समय ओंकार के साथ "ओम नमः शिवाय" मन्त्र का जाप करना चाहिए तथा माथे पर भस्म लगानी चाहिए।
- पूर्णमासी, अमावस्या, संक्रान्ति, ग्रहण, संग्राम आदि पर्वों पर रुद्राक्ष धारण किए रहना चाहिए। धारक की हार, जीत में बदल जाती है एवं पाप नहीं चढ़ता।
- धारक को चालीस दिन में कार्य सिद्धि होती है। अटल श्रद्धा एवं विश्वास अनिवार्य है।
- जो मनुष्य नित्य रुद्राक्ष पूजता है, उसे राजा के समान धन मिलता है।
- भूत आदि बाधायें रुद्राक्षधारी मनुष्य से दूर भागते हैं। उसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं दे सकते।
- जो मनुष्य १०८ रुद्राक्ष की माला धारण करता है, वह प्रत्येक क्षण अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति करता है।
- रुद्राक्ष धारण करने का विधान मनुष्यमात्र को है, भेद यही है कि द्विज मन्त्र से तथा शूद्र बिना मन्त्र के धारण करें।
- रुद्राक्ष धारण करने के साथ सुबह-सायं दुर्गा चालीसा अथवा शिवमहिम्न अथवा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ किया जाये तो सोने में सुहागा जैसी सफलता मिलती है।
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