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बोधकथा: बड़ा आदमी एक Short Story

Bodhakatha Bada Aadami: बड़प्पन हर काम में झलकता है, हर विचार से छलकता है । तभी तो बड़े आदमी की दुनिया के हर पहलू में दिखता है।


बोधकथा बड़ा आदमी एक short story


बोधकथा बड़ा आदमी एक short story


अंग्रेजी साहित्य के विश्वविख्यात साहित्यकार एच. जी. वेल्स विज्ञान लेखन के क्षेत्र में अग्रणी माने जाते हैं। वे स्वभाव के अत्यन्त दयालु और शांतिप्रिय व्यक्ति थे । 


लंदन के एक आभिजात्य क्षेत्र में उन्होंने अपने निवास के लिए एक बहुत बड़ा और भव्य बंगला बनवाया । बंगला बनने के उपरान्त कमरों को अच्छी तरह से सुसज्जित किया गया और फिर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को उसमें रहने के लिए कह दिया गया । 


कर्मचारियों को भव्य और सुसज्जित कमरे देने के बाद उन्होंने अपने लिए उस मकान की ऊपरी मंजिल पर एक साधारण कक्ष बनवाया जहां वे रात्रि विश्राम किया करते थे। लोगों को यह सब देखकर आश्चर्य होता था । 


जब बात ज्यादा बढ़ने लगी और लोगों को पचा पाना कठिन हो गया, तो एक दिन उनके किसी मित्र ने उनसे पूछ ही लिया, ‘इतना भव्य भवन बनवाने के बाद भी तुमने अपने लिए यह साधारण-सा कक्ष क्यों चुना? जबकि निचली दो मंजिलों में इतने कमरे बने हुए हैं ?' 


वेल्स को ऐसे प्रश्नों की आशंका थी। उन्होंने सरलता के साथ उत्तर में कहा, 'उन कमरों में हमारे कर्मचारी निवास करते हैं ।' 


मित्र को सुनकर आश्चर्य हुआ। हंसकर कहने लगे, 'क्या कमाल करते हो, सर्व सामान्य में यही प्रचलित है कि भव्य भवन में लोग स्वयं रहते हैं और कर्मचारियों के लिए साधारण कमरे होते हैं, ऐसे ही जैसा तुम्हारा यह शयनकक्ष है । किन्तु तुमने तो ... '

 

यह सुनकर वेल्स कुछ क्षण मौन रहे। कुछ क्षणोपरांत बड़े गम्भीर भाव से उन्होंने कहा, 'मैंने अपने कर्मचारियों को भव्य कमरे इसलिए दिए हैं, क्योंकि मेरा बाल्यकाल एक सीलन-भरे तंग कमरे में गुजरा है। मैं जानता हूं कि ऐसे कमरों में रहना कितना कष्टकारक होता है ।' 


मित्र महोदय उत्तर सुनकर अवाक् रह गए । एच. जी. वेल्स ने पुनः व्यथित स्वर में कहा, 'तुमको शायद पता न हो कि मेरी मां किसी समय में लंदन के एक सम्पन्न परिवार में घर के कामकाज ( महरी का काम करती थीं।' वह व्यक्ति एचजी वेल्स को निहारता रहा और फिर बड़े मध्यम स्वर में बोला, 'पहले तो मैं केवल इतना ही जानता था कि तुम बहुत बड़े साहित्यकार हो, किन्तु आज विदित हुआ कि तुम एक बहुत बड़े आदमी भी हो। ऐसे मित्र पर मुझे गर्व है।' ( पुस्तक- ज्ञान कथाएं )


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