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सबसे बड़ा पुण्य एक Moral Hindi Story

सबसे बड़ा पुण्य एक moral Hindi story: एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था , हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता । वह इतना कर्मठ था कि अपना सुख , ऐशो -

सबसे बड़ा पुण्य एक:  एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था , हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता । वह इतना कर्मठ था कि अपना सुख , ऐशो - आराम सब छोड़कर सारा समय जन कल्याण में ही लगा देता । एक सुबह राजा बन की तरफ भ्रमण करने के लिए जा रहा था कि उसे एक देव के दर्शन हुए । 

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राजा ने देव को अभिनन्दन किया और देव के हाथों में एक लम्बी - चौड़ी पुस्तक देखकर उनसे पूछ- " महाराज , आपके हाथ में यह क्या है ?"

देव बोले- " राजन ! यह हमारा बहीखाता है , जिसमे सभी भजन करने वालों के नाम हैं । " राजा ने निराशायुक्त भाव से कहा- " कृपया देखिये तो इस किताब में मेरा नाम भी है या नहीं ? " 

राजा का नाम कहीं भी नजर नहीं आया । उस दिन राजा के मन में आत्मग्लानि उत्पन्न हुई लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया और दूसरों की सेवा करने में लग गए । 

कुछ दिन बाद राजा फिर सुबह वन की तरफ टहलने के लिए निकले तो उन्हें वही देव महाराज के दर्शन हुए , इस बार भी उनके हाथ में एक पुस्तक थी । 

राजा ने फिर पूछा- " महाराज ! आज कौन - सा बहीखाता आपने हाथों में लिया हुआ है ? " 

देव ने कहा- " राजन ! आज के बहीखाते में उन लोगों का नाम लिखा है जो ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय हैं । " 

देव ने बहीखाता खोला और पहला नाम राजा का ही था । राजा ने आश्चर्यचकित हुआ । देव ने कहा- " राजन ! इसमें आश्चर्य की क्या बात है ? परोपकार और नि : स्वार्थ लोकसेवा किसी भी उपासना से बढ़कर हैं । " देव ने वेदों का उदाहरण देते हुए कहा

कुर्वत्रेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छनं समाः 

एवान्त्वाप नान्यतोअस्ति व कर्म लिप्यते नरे 

अर्थात् ' कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा करो तो कर्मबंधन में लिप्त हो जाओगे . ' राजन ! भगवान दीनदयालु हैं । उन्हें खुशामद नहीं भाती बल्कि आचरण भाता है । सच्ची भक्ति तो यही है कि परोपकार करो । दीन - दुखियों का हित - साधन करो । 

अंतत : निष्कर्ष यही निकलता है कि पूजा पाठ का भी अपना महत्त्व है । इससे मन शुद्ध होता है और अच्छे मार्ग पर चलने को तैयार होता है परंतु श्रेष्ठ तो परोपकार ही है । बिना परोपकार किए पूजा पाठ का कोई महत्त्व नहीं है ।

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