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बाड़ और झाड़ी हिन्दी कहानी | Kahani Baad our Jhadi

बाड़ और झाड़ी हिन्दी कहानी: अविवाहित रह कर अलग-अलग पुरुषों के साथ सहजीवन बिताने वाली मृणालिनी आज ईश से मिलकर सोच रही थी कि काश, समय 25-30 साल पीछे लौट पाता....


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बाड़ और झाड़ी हिन्दी कहानी | Baad our Jhadi hindi kahani 


मुझे जब आफिस की तरफ से 2 महीने की ट्रेनिंग के लिए मद्रास भेजा गया तो पत्नी व बच्चे उदास हो गए. वे 2 महीने तक अकेले मुंबई में कैसे रहेगे, मुझे भी उन की चिंता सता रही थी. मेरे मातापिता देहरादून में रहते थे और शीना के दिल्ली में . पर दोनों बच्चों के स्कूल होने के कारण शीना इन दोनों जगहों पर भी नहीं जा सकती थी. बेटी का इस साल बोर्ड था, इसलिए जाना और भी मुश्किल था. शीना व बच्चों ने मेरे साथ एअरपोर्ट तक आने की जिद की और मुझे छोड़ने एअरपोर्ट आ गए. 


बच्चों को प्यार और शीना को दिलासा दे कर मैं एक हाथ हवा में लहराता हुआ और दूसरे हाथ से सामान की ट्राली धकेलता हुआ एअरपोर्ट के अंदर आ गया. एक्सरे मशीन पर सामान स्क्रीन करा कर, चेकइन काउंटर पर सीधे चेन्नई के लिए बुक हो गया और मेरे हाथ में बोर्डिग कार्ड आ गया. 


फिर सिक्योरिटी को पार कर मैं एअरपोर्ट के डिपार्चर लाउंज में आ गया. फ्लाइट में अभी 30 मिनट की देरी थी, इसलिए मैं वहीं कुरसी पर पसर गया. तभी बगल की कुरसी पर 48-50 साल की एक महिला आ कर बैठ गई .

सधा व गठा हुआ शरीर, लंबी, उजला रंग, तीखे नैननक्श, सलीके से बंधी आसमानी रंग की शिफान की साड़ी, आंखों पर काला चश्मा, कंधे तक लहराते केश. कुल मिला कर उस स्त्री के जहीन व नफासत वाले व्यक्तित्व में गजब की कशिश थी. खूबसूरत पत्नी के होते हुए भी मैं पलट कर देखे बिना रह न सका. लेकिन उस के चेहरे पर उम्र की रेखाएं हलके-हलके स्पष्ट हो रही थीं. ठीक उसी समय उस ने भी मेरी तरफ देखा. कुछ देखा हुआ चेहरा लगा, तो मैं अपनी याद्दाश्त पर जोर डालने लगा .


भूलने की तो तुम्हारी बहुत पुरानी आदत है. है न ईश? पर आज तो तुम मुझे ही भूल गए, "वह अचानक बोली, तो मैं भी जैसे उस की आवाज सुन कर यादों के दलदल से बाहर आ गया 


ओह, मृणालिनी तुम ?" 


हां मैं. शुक्र है, पहचान लिया वरना तो मुझे अपनी पूरी जन्मपत्री बांचनी पड़ती,” कह कर वह खिलखिला कर हंस पड़ी. खिलखिलाने से गालों पर पड़े 2 मनोहर गड्ढे ... मुझे जैसे हाथ पकड़ कर अतीत के अंधकार में खींच रहे थे .


 तुम यहां कैसे ? " मैं अभी भी आश्चर्य से उसे देख रहा था. 


जैसे तुम, "वह फिर खिलखिलाई, “मैं आफिस के काम से चेन्नई जा रही हूं और तुम ?" 


 मैं भी 2 महीने की ट्रेनिंग के लिए चेन्नई जा रहा हूं ." 


अरे वाह, तब तो अच्छा रहेगा. मैं तो सोच रही थी कि चेन्नई में मैं किसी को जानती नहीं, बोर हो जाऊंगी. मुझे भी वहां पर एक हफ्ता रहना पड़ेगा ." 


अभी हम बातें कर ही रहे थे कि फ्लाइट बोर्डिग की घोषणा हो गई . हम उठ कर डिपार्चर लाउंज से विमान की तरफ चल दिए

 

विमान ने उड़ान भरी और एक निश्चित ऊंचाई पर आ कर अपनी यात्रा पूरी करने लगा तो हम दोनों भी बेल्ट खोल कर अपनीअपनी सीटों पर व्यवस्थित हो गए . 


लगभग 25-26 साल पहले या फिर उस से भी अधिक ... मृणालिनी व मैं ने कानपुर आईआईटी कालेज से इंजीनियरिंग की थी. हम दोनों ही पढ़ने में तेज व आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे. हां, दोनों के विचारों में काफी फर्क था. फिर भी कुछ तो समानता थी, जिस से दोनों एकदूसरे से जुड़े थे. 


हमारी दोस्ती पूरे कालेज में मशहूर थी लेकिन बदनाम नहीं, क्योंकि हम पढ़ने के अलावा अन्य कार्यक्रमों में भी आगे रहते थे. हमारे विचारों में फर्क शायद हमारी परवरिश का था. 


मैं एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार का युवक था. मेरे संस्कार धर्म, समाज, परिवार और चरित्र आदि के मामले में बहुत परिपक्व और मजबूत थे और ये संस्कार मुझे अपने मध्यवर्गीय परिवार से मिले थे, जबकि मृणालिनी उच्चवर्गीय समाज से ताल्लुक रखती थी. वह बेबाक थी. समाज और सामाजिक बंधन उस के पैरों की जूती थे. वह अपना समाज खुद बनाती थी. वह किसी धार्मिक भय से बंधी नहीं थी. मां के न होने से परिवार के साथ उस के भावनात्मक संबंध मजबूत नहीं थे और चरित्र को तो वह मजाक उड़ाने की चीज समझती थी. 


हमारे साथी विद्यार्थी हमें देख कर यही सोचते थे कि समय आने पर हम दोनों अवश्य ही विवाह बंधन में बंध जाएंगे. सच कहूं तो दिला के एक कोने में मैं ने भी यही सोचा था . 


मृणालिनी हर तरह से मुझ से बीस थी, इसीलिए मैं खुद पहल करने में हिचकता था और उस की तरफ से ही पहल करने का इंतजार करता रहता. मुझे उस की एक बात बुरी लगती, उस की मेरे साथ तो दोस्ती थी ही, पर मेरे अलावा वह अन्य कई लड़कों के भी बहुत करीब थी . 


अन्य लड़कों के साथ उस का खुल कर हंसीमजाक करना, बेबाक ढंग से बात करना, कंधे पर हाथ रखना या किसी लड़के का अपने कंधे पर हाथ रखने पर एतराज न जताना, अपने मध्यवर्गीय संस्कारों के कारण मुझे अच्छा नहीं लगता था . 


कभी मैं धीरे से यह बात कहता भी तो वह मेरे विचारों का मजाक बनाती. लेकिन मैं यही सोचता था कि जब हम भविष्य में एक होंगे, तब मैं प्यार से उस की कई आदतों को बदल दूंगा

 

उस के और मेरे बीच अकसर हर विषय पर चर्चा होती. लड़की होते हुए भी उस की जानकारी किसी भी विषय पर कम नहीं थी. राजनीति, खेल, फिल्म, विज्ञान, साहित्य पर उस की पकड़ कम या ज्यादा हर क्षेत्र में थी और मेरी भी ... यही खासीयत शायद हमें एकदूसरे से इतना बांधे हुए थी, क्योंकि किसी दूसरे से हम इस तरह से हर विषय पर बात नहीं कर पाते थे. ठीक से कहा जाए तो हम एकदूसरे की मानसिक भूख को शांत करते थे 


हमारे बीच में अकसर सब से वर्जित विषय सेक्स पर भी चर्चा हो जाती थी. शारीरिक संबंधों पर उस के विचार बहुत खुले थे।वह अकसर इस विषय पर बेबाक टिप्पणी करती तो मैं संकुचित हो जाता. वह किसी भी स्त्रीपुरुष के बीच, चाहे वह पतिपत्नी हैं या नहीं, शारीरिक संबंधों को उन का नित निजी मसला समझती थी. 


वह मानती थी कि हमारे शरीर पर हमारा अधिकार है, इस पर किसी समाज या विवाह का बंधन क्यों हो. वह विवाह से पहले शारीरिक संबंधों को बुरा नहीं मानती थी.


उस के ऐसे विचार अकसर मुझे सिहरा देते. मैं मध्यवर्गीय परिवार का युवक, विवाह से पहले सेक्स को वर्जित विषय मानता था. लेकिन वह कहती थी कि यह पुरानी बात है, जब यौनसंबंधों का मतलब बच्चे होना होता था और उस के लिए विवाह करना जरूरी होता था. लेकिन अब तो सुरक्षित यौनसंबंधों के तमाम तरीके हैं तो इस के लिए वैवाहिक बंधन में बंधने की क्या जरूरत है. हां, बच्चे पैदा करने हों तो विवाह करो वरना नहीं . 


ऐसे ही एक दिन हम दोनों बैठे बातें कर रहे थे. हमारी चर्चा कहीं से शुरू हो कर, कहीं खत्म होती थी. उस दिन भी चर्चा किसी दूसरे विषय से शुरू हो कर शारीरिक संबंधों पर आ कर अटक गई . 


शारीरिक संबंध बनाने के लिए विवाह जरूरी नहीं है, ईश ? जरूरी है, आपस में समर्पण, विश्वास, प्यार और आकर्षण ."


लेकिन जब यह सब आपस में हो तो विवाह क्यों नहीं कर लेना चाहिए. बिना विवाह के ही शारीरिक संबंध बनाओ, क्या यह जरूरी है? क्यों नहीं विवाह पहले करना चाहिए और शारीरिक संबंध बाद में ?" मैं ने तर्क किया.


लेकिन अगर कोई विवाह करना ही नहीं चाहे तो क्या वह सारा जीवन यौनसुख के बिना ही बिता देगा?" उस ने बेबाक टिप्पणी की, 'पुरुष के लिए यह सब वर्जित नहीं तो स्त्री के लिए क्यों ?" 


लेकिन तुम विवाह को इतना बुरा क्यों समझती हो ?" मैं ने उस के दिल की थाह लेनी चाही. 

 

क्योंकि एक आदमी की गुलामी है यह. अपना सब कुछ ताक पर रख कर किसी एक आदमी की गुलामी से ज्यादा विवाह क्या अहमियत रखता है, आज की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर किसी औरत की जिंदगी में ?" 


"क्या तुम समझती हो कि तुम्हारी मम्मी ने भी एक आदमी की गुलामी की थी ?" 


"बिलकुल, मैं यही समझती हूं, "वह अनायास ही उत्तेजित होते हुए बोली, “पापा की हाई सोसाइटी की शान थी वह, चमचमाती साड़ी में सजी एक गुड़िया, जिस के लिए शानदार गाड़ी में पापा की बगल में विराजमान होना जरूरी था. समाज से जुड़ने का एक माध्यम भर थीं वह पापा के लिए, वह भी जब पापा चाहें तब, स्वयं अपनेआप में वह क्या थीं, उन की अपनी क्या पहचान थी, वह कहीं पर भी पापा की पत्नी या हमारी मां के रूप में ही जानी जाती थीं  अपना उन का वजूद क्या था ? " 

"क्या किसी की पत्नी होना, बच्चों की मां होना, तुम्हें औरत के लिए, गौरवान्वित होने जैसा कुछ भी नहीं लगता ?" 


"किसी की पत्नी या मां होने में गर्व करने जैसा क्या है ? इस में किसी औरत की क्या खासीयत है? विवाह होगा, शारीरिक संबंध होंगे तो बच्चे हो जाएंगे और पालोगे तो प्यार भी होगा ."


वह इतनी प्यारी भावनात्मक बातों को भौतिक रूप से तोलती हुई बोली. मैं निराश हो गया. ऐसी लड़की से विवाह क्या संभव होगा, मैं सोचता, लेकिन उस से दूर होने की कल्पना से भी विचलित हो जाता. 


"तो तुम विवाह नहीं करोगी ?" मैं ने उस का आखिरी फैसला सुनना चाहा.

'नहीं, "वह विश्वास से बोली. फिर खिलखिलाने लगी, “पर तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो मियां मजनू ? तुम तो तथाकथित सुधरे हुए लड़के हो, तुम तो अपने मम्मीपापा का कहना मान कर एक सीधीसादी, धर्मपरायण, चरित्रवान, जिस पर किसी परपुरुष की छाया भी न पड़ी हो, ऐसी किसी देवी से विवाह कर लेना. पर मुझे बुलाना न भूलना ."

"और अगर मैं तुम से विवाह करना चाहूं तो ..." 

"मुझ से ?" वह पेट पकड़ कर हंसने लगी, "क्या तुम्हारा ऐसा कोई खतरनाक इरादा है ?" फिर थोड़ा रुक कर पुन: बोली, "देखो ईश, मैं तुम्हारे दिमाग, तुम्हारी जागरूकता, तुम्हारे ज्ञान, तुम्हारे आत्मविश्वास से तुम्हें पसंद करती हूं ... तुम्हारे विचारों से नहीं. हम दोनों का विवाह तो वैसे भी सफल नहीं हो सकता. हमारी इंजीनियरिंग का यह आखिरी साल है, उस के बाद हम नौकरी पर लग जाएंगे, तुम मेरे साथ सहजीवन बिताना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं, पर विवाह का बंधन मुझ से न निभाया जाएगा." 

"तो क्या, हम सारा जीवन ऐसे ही बिता देंगे सहजीवन व्यतीत करते हुए? आखिर कभी तो विवाह करेंगे. बच्चे पैदा करने के लिए ही सही, विवाह तो करेंगे ही. तो जो तब करना है वह अभी क्यों नहीं ? " मैं उसे खोना नहीं चाहता था. 

"बच्चे ? विवाह तो औरत की प्रगति में रोड़ा है ही और बच्चे तो बेड़ियां हैं. मैं बच्चे पैदा करने के पक्ष में बिलकुल नहीं हूं, इसीलिए तुम्हें सलाह दे रही हूं कि तुम किसी अपने टाइप की लड़की से विवाह कर लो. 

"मैं चुप हो गया. वह शायद हमारा आखिरी वादविवाद था. कैंपसइंटरव्यू में हमें अच्छी कंपनियों से ब्रेक मिल गया था. इम्तिहानों के बाद हम ने अपनीअपनी राह पकड़ ली. मैं कंप्यूटर इंजीनियर था, सुंदर था. अच्छे से अच्छे रिश्ते मेरे लिए आए और फिर शीना से मेरा विवाह हो गया. शीना में वे सभी गुण थे, जो एक अच्छी पत्नी, बहू व मां में होने चाहिए. उस के साथ मेरा जीवन सुंदर, सहज व सुव्यवस्थित व्यतीत हो रहा था.

मैं चुप हो गया. वह शायद हमारा आखिरी वादविवाद था. कैंपस इंटरव्यू में हमें अच्छी कंपनियों से ब्रेक मिल गया था. इम्तिहानों के बाद हम ने अपनीअपनी राह पकड़ ली. मैं कंप्यूटर इंजीनियर था, सुंदर था. अच्छे से अच्छे रिश्ते मेरे लिए आए और फिर शीना से मेरा विवाह हो गया. शीना में वे सभी गुण थे, जो एक अच्छी पत्नी, बहू व मां में होने चाहिए. उस के साथ मेरा जीवन सुंदर, सहज व सुव्यवस्थित व्यतीत हो रहा था. 


मृणालिनी से कई बार मुलाकात हो जाती. वह अपने एक दोस्त राहुल के साथ सहजीवन बिता रही थी. 5 साल तक राहुल के साथ रह कर वह राहुल से अलग हो गई. राहुल ने अन्यत्र विवाह कर लिया. फिर सुना, वह अपने ही बौस के साथ रहने लगी . इतनी अच्छी व ब्रिलियंट लड़की का ऐसा स्वच्छंद जीवन जीना मुझे अंदर से दुखी कर देता था . 

आखिर क्या होगा इस का भविष्य ? क्या मंजिल है इस जीवन की ? स्वच्छंद यौन संबंध आखिर उम्र के किसी मोड़ पर जा कर ठहरेंगे और जब ठहरेंगे तक क्या होगा ? सोच कर मैं अंदर ही अंदर कांप जाता . फिर शीना के मृणालिनी को नपसंद करने के कार, मेरी उस से मुलाकात कम होतेहोते खत्म हो गई थी. आज हम लगभग 15 साल बाद मिल रहे थे . 

"कहां गुम हो, ईश ?" मृणालिनी मेरी आंखों के आगे अपनी हथेली लहरा रही थी, "मुझे देख कर तुम्हारी खो जाने और भूल जाने की आदत अभी तक नहीं गई," वह फिर खिलखिलाई . जवाब में मेरे चेहरे पर भी फीकी सी मुसकराहट आ गई .

 

मृणालिनी अभी भी वैसी ही खिलखिलाती थी . लेकिन उस की खिलखिलाहट में अब वह तेज नहीं रहा. खिलखिलाहट खोखली लगती है . जैसे उस खोखलेपन में उस के अरमानों की लाशें दबी पड़ी हों, जिसे उस ने जमाने से छिपा कर मार डाला 


तभी विमान परिचारिका कौफी ले कर आ गई. हम अपना अपना कप उठा कर चुसकी लेने लगे . 


'और कैसी हो, मृणालिनी ? तुम तो न जाने कहां गुम हो गई थीं ?' पूछना चाह रहा था, 'आजकल किस के साथ रह रही हो ?' लेकिन मेरे संस्कार इस की इजाजत नहीं दे रहे थे, इसलिए कहा, "तुम तो वैसी ही दिखती हो अभी भी,” झूठ बोल गया था मैं. उस के लिपेपुते चेहरे पर अब निराशा की रेखाएं थीं, अकेलेपन का दर्द था और सुंदर आंखों में अवसाद घनीभूत हो उठा था, “क्या विवाह कर लिया तुम ने ?" मेरे मुंह से फिसल गया," या विवाह को ले कर तुम अभी भी वही विचार रखती हो, जिन से हम दोनों अलगअलग पथ के राही बन गए थे ?" 


उस के चेहरे और आंखों के भाव और भी स्पष्ट हो उठे . उस ने कुछ कहना चाहा, तभी विमानपरिचारिका की आवाज गूंज गई, उस ने चेन्नई पहुंचने की सूचना दी और अपनीअपनी सीट बेल्ट बांधने के लिए कहा . 


मृणालिनी की बात उस के होंठों के अंदर ही रह गई . दोनों ने अपनीअपनी सीट बेल्ट बांध ली और विमान के उतरने का इंतजार करने लगे . विमान के पहियों ने हवाईपट्टी को छुआ और दाएंबाएं रेंगते हुए एअरपोर्ट पर आ कर खड़ा हो गया . एअरपोर्ट की सभी औपचारिकताएं पूरी कर के जब तक हम दोनों बाहर नहीं आ गए, हम ने एकदूसरे से एक शब्द भी नहीं बोला . 


"अब” मैं असमंजस में उस से पूछ बैठा, " तुम कहां ठहरोगी ? मेरा तो रहने का प्रबंध कंपनी के गेस्टहाउस में है ."


'मेरी एक होटल में बुकिंग है, मैं यहां पर एक हफ्ते तक हूं . तब तक तुम भी उसी होटल में ठहर जाओ, बहुत सारी बातें करनी हैं, तुम से ईश . बहुत दिनों बाद कोई अपना मिला, मेरे जाने के बाद तुम गेस्टहाउस में शिफ्ट हो जाना. 


"मैं भी उस के बारे में बहुत कुछ जानना चाहता था कि मुझे ठुकरा कर आज वह किस हाल में है. हम दोनों ने होटल के लिए टैक्सी कर ली. होटल में मैं ने भी अपने लिए एक कमरा बुक करा लिया. हमारे कमरे एक ही फ्लोर पर थे. रात को थक कर दोनों अपनेअपने कमरे में सो गए . 


फिर 4-5 दिन का रूटीन बहुत टाइट रहा . इतने पास होते हुए भी हमारी बातें बहुत कम हो पाती थीं . अकसर मैं बहुत देर से लौट पाता, क्योंकि मेरा आफिस उस होटल से बहुत दूर पड़ता था . 


4-5 दिनों के टाइट रूटीन के बाद उसे थोड़ी फुरसत मिली, तो उस ने मेरे मोबाइल पर आफिस फोन किया, “आज फुरसत में हो क्या,ईश ? कल शाम की फ्लाइट से मुंबई वापस जा रही हूं, आज रात का डिनर साथ करेंगे, क्या जल्दी आ सकते हो ? 


मैं ने मन ही मन अपने कार्यक्रम का हिसाब लगाया, आज का कुछ काम कल पर टाला और उस से जल्दी आने का वादा कर दिया . आफिस से जल्दी निकलतेनिकलते भी 6 बज गए और होटल पहुंचते पहुंचते रात हो गई . वह मेरा इंतजार कर रही थी.


"चलो, तुम्हारे कमरे में बैठते हैं . वहीं डिनर मंगवा लेंगे," आज मुझे वह कुछ थकी सी लग रही थी . 


 "बहुत थकी लग रही हो ? " 


"हां, इस 1 हफ्ते में बहुत काम हो गया, मुंबई जा कर 2 दिन की छुट्टी ले कर सोऊंगी . 


"इतनी बड़ी कंपनी में इतने बड़े ओहदे पर हो २ तो काम तो होगा ही. बड़ा ओहदा, बड़ी जिम्मेदारी, कई कर्मचारी तुम्हारे नीचे काम करते हैं. मेरे छोटे से फ्लैट की मैनेजर होती और मुझ पर व बच्चों पर शासन करतीं तब शायद इतना काम नहीं होता पर यह शानबान भी कहां होती, "मैं मुसकराते हुए बोला . बोलतेबोलते मेरा स्वर तिक्त हो उठा था . 


"जले पर नमक बुरकना तो तुम्हें खूब आ गया, ईश,” वह बिना उत्तेजित हुए उदास स्वर में बोली . 


उस के ठंडे स्वर की अनापेक्षित उदासी से मैं चौंक गया . मैं तो उस की तरफ से किसी करारी टिप्पणी की उम्मीद कर रहा था . 


मेरे कमरे में जा कर वह सोफे पर पसर गई . मैं बाथरूम में फ्रेश होने चला गया . फ्रेश हो कर आया, तब तक उस ने चाय, ड्रिंक्स व स्नैक्स मंगवा लिए थे . 


कहने को बहुत कुछ था, दोनों के हृदयों में जैसे तूफान भरा था पर शब्द मानो चुक गए थे . 


"तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया, मृणालिनी, क्या तुम ने विवाह कर लिया ? " थोड़ी देर बाद बातचीत का सूत्र थामते हुए मैं बोला . 


"विवाह करना होता तो आज मैं तुम्हारी पत्नी और तुम्हारे बच्चों की मां होती, " बिना किसी लागलपेट के वह रिक्त स्वर में बोली . 


मेरे अंदर कुछ दबे हुए अरमान उमड़घुमड़ गए, “तो फिर ..." 


"अकेली ही रहती हं "


"बस, ऐसे ही,” वह गिलास मुंह से लगाते हुए बोली, “एक बार तुम्हें खो कर तुम्हारे जैसा जो नहीं मिला. जो भी मिला मेरे जैसा ही मिला, "वह विद्रूप सी हंसी हंसी. प्रश्नवाचक दृष्टि से मैं उसे देखने लगा . मैं उस की बातों का अर्थ नहीं समझ पाया था .

 

"पर तुम तो अपने बौस के साथ रह रही थीं न ? 


"कब तक रहती? उस समय दुनिया मेरी मुट्ठी में थी . 4 साल तक हम साथ रहे, उस के बाद वह मुझ से ऊबने लगा . वह मुझे छोड़े, इस से पहले ही मैं ने उसे छोड़ दिया .


"फिर ? " 


तब तक वेटर खाना ले कर आ गया, पल भर के लिए वह चुप हो गई , वेटर चला गया तो उस ने पुनः बोलना शुरू किया, "तब तक मेरी उम्र 35 के आसपास हो गई थी . ठीक उन्हीं दिनों मेरे पापा का देहांत हो गया," बोलतेबोलते वह कुछ उदास हो गई .   

'तुम्हारा एक भाई भी तो था न ?" था नहीं, है वह भी अपने परिवार के साथ मुंबई में रहता है, लेकिन हमारा मिलना साल दो साल में ही हो पाता है ."


"पापा के जाने के बाद से ही अकेली रहती हो ?" 


"नहीं ईश, उस के बाद मैं ने 3 अन्य पुरुषों के साथ भी सहजीवन व्यतीत किया . सच कहूं , ईश ...


वह पहलू बदलते हुए बोली, “उस के बाद हर साथी पुरुष से मैं ने यही उम्मीद की कि अब जीवन में ठहराव मिल जाए, वह मुझ से विवाह कर ले. मैं ईश, मैं ... जो विवाह के सख्त खिलाफ थी, विवाहबंधन में बंधने को आतुर हो रही थी, मां बनने की चाहत मन में अंगड़ाई ले रही थी, लेकिन कोई भी पुरुष मुझ जैसी लड़की से विवाह क्यों करता ? " 


वह पल भर के लिए चुप हो गई, "5-5 पुरुषों का साथ कर के भी आज मैं अकेली रह गई . जानते हो, तब तुम बहुत याद आते थे, तुम पर गुस्सा आता कि तुम ने मुझे इस राह पर चलने से रोका क्यों नहीं या फिर मेरे लौटने का इंतजार क्यों नहीं किया. इतने पुरुषों के साथ मेरे यौनसंबंध रहे. लेकिन मैं ने प्यार ' सिर्फ तुम से किया ईश सिर्फ तुम से .”


वह भावुक हो कर दिल की बात कह गई थी . उस जैसी लड़की को मैं ने पहली बार भावुक होते हुए देखा था . 


मैं ने उस की बात का कोई जवाब नहीं दिया. मेरे दिल का जख्म एकाएक हरा हो गया था . 


"हम दोनों समाज के 2 अलगअलग वर्गों का, विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, ईश . आज की युवा पीढ़ी में मेरे जैसी विचारधारा और भी परिपक्व हो गई है और ऐसे विचार रखने वाली युवा पीढ़ी का भविष्य मैं हूं . कितनी गलत थी मैं कि सिर्फ यौनसंबंधों की स्वतंत्रता और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता को ही जीवन समझती रही . मैं ने विवाह करने को स्त्री की उन्नति और स्वतंत्रता से क्यों जोड़ा . 


क्या नौकरी में बंधन नहीं ? मातापिता, भाईबहन के साथ रहने में बंधन नहीं ? क्या दोस्त के साथ रहने में बंधन नहीं? पर ये सब अनुभव धीरे-धीरे हुए. बंधन मुझे बुरे लगते थे, पर आज उन्हीं बंधनों में बंधने को मन छटपटाता है, ईश. दिल करता है कोई मुझे रोके, टोके, मेरा इंतजार करे. भविष्य की अब कोई कल्पना नहीं है . डर लगता है अकेलेपन से, बुढ़ापे से . 


'समाज के एक वर्ग का प्रतिनिधित्व तुम भी करते हो, ईश . जिन के संस्कार बहुत मजबूत हैं, जहां पारिवारिक व भावनात्मक बंधन बहुत सुदृढ़ हैं , पुरुष होते हुए भी तुम मर्यादा में बंधे रहे . आज जिंदगी की शाम ढलने को है, पर तुम्हें दिन ढलने का गम नहीं . यह तुम्हारे चेहरे से झलकता है, सब कुछ है तुम्हारे पास और मेरे पास क्या है, कुछ नहीं. उस बंद फ्लैट में किसी दिन चुपचाप मर जाऊंगी और किसी को पता भी नहीं चलेगा ."


रोकतेरोकते भी उस की आंखों से आंसू छलक पड़े, मैं अपनेआप को रोक नहीं सका . कभी वह मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी और मैं ने उसे तहेदिल से चाहा था . लेकिन एक नाव के 2 विपरीत कोनों पर सवार 2 इनसान नाव को कहां तक ले जा सकते हैं, एक को तो अपनी नाव बदलनी ही पड़ेगी . मैं उस के पास सोफे पर बैठ गया . सांत्वना के लिए मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख दिया . 


अचानक वह मुझ से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी, “पता नहीं अब तुम से कभी मुलाकात हो या न हो ईश .” 


'तुम अपने भाई के साथ क्यों नहीं रहतीं?" मैं उस का सिर सहलाते हुए बोला . 


अवांछित इनसान को अपनी गृहस्थी में रखना कोई क्यों पसंद करेगा, उस की बीवी मुझे देखना भी पसंद नहीं करती .मेरे पास न कोई जवाब था, न उस की समस्या का कोई समाधान . 

 खाना अनछुआ ही पड़ा रह गया था . 


 'कुछ खाओगी, मृणालिनी ? "


 "नहीं," वह वैसे ही सुबकते हुए बोली . 


वेटर को बुला कर मैं ने खाना वापस ले जाने के लिए कह दिया, “चलो, तुम्हें तुम्हारे कमरे में छोड़ आऊ, रात काफी हो गई है, " मैं उसे उठाते हुए बोला . उसे उस के कमरे में बिस्तर पर लिटा कर, मैं वापस मुड़ा तो उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया . मैं ने मुड़ कर देखा, उस की आंखों में कई प्रश्न थे पर मेरी आंखों में भी उस के हर प्रश्न का जवाब था. मैं ने अपना हाथ छुड़ा लिया और दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में लौट आया . 


बिस्तर पर लेटा तो मृणालिनी और शीना मेरे मस्तिष्कपटल पर एकसाथ आ रही थीं . एक जंगली झाड़ी थी और एक तरतीब से उगी हुई बाड़. जंगली झाड़ी को कोई भी अपनी इच्छा से, अपने फायदे के लिए काटता है, नोचता है और घर में उगी हुई बाड़ को एक ही माली पालता-पोसता है, धूपछांव, बरसात से बचाने की कोशिश करता है, तरतीब से काटता है, दूसरा कोई उसे छू भी नहीं सकता और न ही इस्तेमाल कर सकता है.  जंगली झाड़ी को लोग सिर्फ इस्तेमाल करते हैं लेकिन देखते उपेक्षित दृष्टि से हैं, किसी के आंगन में लगी बाड़ को लोग इज्जत की निगाहों से देखते हैं, सराहते हैं और खुश होते हैं, उसे छूने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता . 


जैसे उपेक्षित पड़ी झाड़ी आखिर सूख कर लूंठ हो जाती है, वैसी ही हो गई है मृणालिनी . मृणालिनी के जीवन की कहानी भी किसी जंगली झाड़ी से अलग नहीं. इसी झाड़ी को कभी उस ने अपने आंगन की बाड़ बनाना चाहा था 


सोचतेसोचते उस की आंखें मुंदने लगी. कल वह कंपनी के गेस्टहाउस में शिफ्ट हो जाएगा. काश, युवा पीढ़ी सोचे कि उन्हें जंगली झाड़ी बनना है या किसी के आंगन की खूबसूरत बाड़ .

 

आर्थिक आत्मनिर्भरता का मतलब विवाह न करना तो नहीं है. आज स्त्री के साथ-साथ पुरुष में भी बदलाव आया है, अब वह पत्नी की प्रगति को रोकता नहीं, बल्कि उस का साथ देता है और देना भी चाहिए ताकि किसी लड़की की कहानी मृणालिनी जैसी न हो. कोई भी लड़की विवाह करने को और बच्चे पैदा करने को अपनी प्रगति की राह में रोड़ा न समझे . 


कोई भी लड़की जंगली झाड़ी न बने, जिंदगी में ऐसी कोई गलती न करे जो सुधर न सके. सोचता-सोचता वह नींद के आगोश में चला गया .


अपने बिस्तर पर लेटी मृणालिनी भी आंखें मुंदते-मुदंते यही सोच रही थी कि काश, समय 25-30 साल पीछे लौट पाता .

 

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