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कहानी तेनालीराम ने बचाई जान एक हिन्दी शॉर्ट स्टोरी

कहानी तेनालीराम ने बचाई जान एक दिन तेनालीराम सुबह - सुबह सोकर उठे ही थे कि राजमहल का एक सेवक दौड़ा दौड़ा आया और उनके कदमों में गिर पड़ा , " रक्षा ...

कहानी तेनालीराम ने बचाई जान


कहानी तेनालीराम ने बचाई जान एक हिन्दी शॉर्ट स्टोरी 

एक दिन तेनालीराम सुबह-सुबह सोकर उठे ही थे कि राजमहल का एक सेवक दौड़ा दौड़ा आया और उनके कदमों में गिर पड़ा, "रक्षा ... रक्षा ...।" 


"अरे भई ! कौन हो तुम, उठो और बताओ कि क्या बात है?" उसे कंधों से पकड़कर ऊपर उठाते हुए तेनालीराम ने पूछा," यह तो बताओ कि आखिर किस्सा क्या है ? " 


वह बोला, “अब आप ही मुझे मरने से बचा सकते हैं ।" 


"आखिर बात क्या है ? कौन हो तुम ?" 


"मैं महल का सेवक हूं महाराज।" रोते रोते वह बोला, "करीब एक माह पूर्व महाराज को एक व्यापारी ने एक तोता भेंट किया था। महाराज ने उसकी देखभाल की जिम्मेदारी मुझे सौंपी थी और कहा था कि यदि तोता मर गया या मुझे तुमने तोते के मरने की सूचना लाकर दी तो तुम्हारा सिर कलम करवा दिया जाएगा। अब तोता तो मर गया, आप ही बताए कि मैं महाराज को ये खबर कैसे दूं ? यदि तोता मरने की सूचना देता हूं तो सिर कलम होता है, नहीं देता तो भी मारा जाऊंगा ।" 


"हूं !" तेनालीराम सोचने लगा । समस्या सचमुच गंभीर थी ।" 


कुछ देर सोचने के बाद वह बोले, "तुम ऐसा करना ....।" 


और फिर वह धीरे-धीरे उसके कान में कुछ बताने लगा। पूरी बात सुनकर रखवाले की आंखों में चमक उभर आई । 


कुछ देर बाद वह चला गया । 


तेनालीराम भी तैयार होकर दरबार में जा पहुंचे। वह महाराज के कक्ष में बैठे बातें कर रहे थे कि तोते का रखवाला वहां आ पहुंचा । 'महाराज की जय हो ।"  


"कहो क्या बात है, तोता कैसा है ?" 


"वैसे तो ठीक दिख रहा है महाराज मगर कल रात से कुछ खा - पी नहीं रहा है ।" 


"क्यों ?"


 'क्या मालूम महाराज, न हिलता-डुलता है और न ही बोलता है। सुबह से तो उसने आंख भी नहीं खोली है ।" 


"ऐसी बात है तो चलो, हम स्वयं चल कर देखते हैं। आओ तेनालीराम ।" 


रखवाला उन्हें लेकर उस स्थान पर आया जहां तोता पिंजरे में रखा गया था । 


महाराज ने तोते को देखा और भड़क उठे और बोले, "अरे मूर्ख ! सीधी तरह क्यों नहीं बोलता कि तोता मर गया है। बात को इतना घुमा-फिराकर क्यों कह रहा है ?"


क्षमा करें महाराज ! आपने कहा था कि यदि तुम मेरे पास तोते के मरने की खबर लाओगे तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग करवा दिया जाएगा ।" 


"ओह !" अब महाराज की समझ में सारी कहानी आ गई । 


 उन्होंने तेनालीराम की ओर देखा, वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था। महाराज समझ गए कि यह सब किया-धरा तेनालीराम का ही है ।" 


'आज तुमने फिर एक निर्दोष की रक्षा कर ली तेनालीराम, तुम धन्य हो ।" 


'सब आपकी कृपा है महाराज !" तेनालीराम ने सम्मान से सिर झुकाया । 


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