प्रत्यय Suffixes -परिभाषा Pratyay in Hindi Grammar
प्रत्यय अर्थ और परिभाषा(Suffix Meaning in Hindi): 'प्रत्यय' शब्द की व्युत्पति दो शब्दों से होती है- प्रति + अय्। 'प्रति का अर्थ' साथ में ' और 'अयू' का अर्थ 'चलनेवाला' होता है। इस अर्थ के निकल जाने से प्रत्यय की परिभाषा आसान हो जाती है।
इस प्रकार प्रत्यय की परिभाषा (Definition of Suffix) होती है शब्दों के साथ बाद में चलनेवाला अथवा लगनेवाला अर्थात प्रत्यय वह शब्द शब्दांश है जो शब्द के अंत में जुड़कर उसके व्याकरणिक रूप या अर्थ में परिवर्तन कर देता है प्रत्यय कहलाता है। “प्रतीयते विधीयते इति प्रत्ययः।" इसका अर्थ हुआ- जिसका किसी शब्द अथवा धातु में विधान किया जाए, वह 'प्रत्यय' कहलाता है। जो अक्षर अथवा शब्दांश होता है, उसे 'प्रत्यय' कहते हैं।
प्रत्यय दो प्रकार के होते है;-
- कृत प्रत्यय- जो धातु में जोड़े जाते है।
- तद्विती प्रत्यय- जो संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण में जोड़े जाते है।
आदियोग को उपसर्ग, मध्ययोग को मध्यसर्ग अथवा विकरण और अन्तयोग को 'प्रत्यय' कहते हैं। कुछ भाषाशास्त्रियों ने प्रत्यय के लिए 'परसर्ग' का प्रयोग भी किया है किन्तु वह अनावश्यक है। अंगरेज़ी में उपसगं को 'प्रिफिक्स' ( Prefix ), मध्यसूर्ग को 'इनफिक्स' ( Infix ) तथा प्रत्यय या अन्तसर्ग अथवा परसर्ग को 'सफिक्स' (Suffix) कहा जाता है।
भारत-यूरोपीय परिवार की भाषाओं में उपसर्ग लगाकर पद बनाने का प्रचलन है। एक ही पद में अनेक उपसर्ग लगाकर और एक ही उपसर्ग को अनेक पदों में जोड़कर भिन्न-भिन्न अर्थ अभिव्यक्त किये जाते हैं कु तथा सु उपसर्ग जोड़कर क्रमश: कुमार्ग, कुचाल, कुदृष्टि, कुचैला तथा सुमार्ग, सुफल, सुजान, सुदृष्टि, सुकुमार आदि पद बनाये जाते हैं। इसी प्रकार एक ही शब्द में विभिन्न प्रत्यय जोड़कर आदेश, निर्देश, सन्देश और प्रदेश आदि पद बनते हैं, जो भिन्न-भिन्न अर्थ का द्योतन करते हैं।
भारतीय भाषाओं में मध्यसर्ग के उदाहरण भी पर्याप्त संख्या में हैं। देखना से दिखाना, दौड़ना से दौड़ाना, खेलना से खेलवाना और मरना से मरवाना आदि इसके उदाहरण हैं।
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संस्कृत के प्रमुख ' तद्धित ' प्रत्यय | tadhit suffix of Sanskrit
हिन्दी के प्रमुख ' तद्धित ' प्रत्यय |Hindi's main 'tadhit' suffix
प्रत्यय जोड़कर निर्मित किये गये शब्दों की संख्या सबसे अधिक है। संस्कृत में संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषणवाचक शब्दों से पद निर्मित करने के लिए अन्त में विभक्ति जोड़ी जाती है। उदाहरणार्थ इस तालिका को समझें:
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
विभक्ति |
रामः |
रामौ |
रामाः |
प्रथमा |
रामम् |
रामौ |
रामान् |
द्वितीया |
रामेण |
रामाभ्याम् |
रामैः |
तृतीया |
रामाय |
रामाभ्याम् |
रामेभ्यः |
चतुर्थी |
रामात् |
रामाभ्याम् |
रामेभ्यः |
पंचमी |
रामस्य |
रामयोः |
रामाणाम् |
षष्ठी |
रामे |
रामयोः |
रामेषु |
सप्तमी |
हे राम |
हे रामौ |
हे रामाः |
सम्बोधन |
- जाते ( जा + ते )
- जाता ( जाता )
- जाएगा ( जा + एगा )
- जाती ( जा + ती )
- जाएगी ( जा + एगी )
अन्तर्वर्ती स्वर में परिवर्त्तन- अन्तर्वर्ती स्वर में परिवर्तन करके भी पदों का निर्माण किया जाता है। इस वर्ग के पदों की संख्या अपेक्षाकृत कम है; जैसे- उचित से औचित्य, देव से दैव, पुत्र से पौत्र, देखना से दिखाना आदि।
परिवर्त्तन- कभी कभी मूल शब्द के स्थान पर एक अन्य शब्द ही चलने लगता है। उदाहरणार्थ 'जाना' क्रिया का भूतकालिक रूप 'गया' होता है जबकि वर्तमान काल और भविष्यत् काल के सभी रूप जाता, जाती, जाएगा, जाएंगे आदि ही हैं। ध्वनि परिवर्तन का कोई भी नियम 'जाना' को 'गया' के रूप में परिवर्तित नहीं कर सकता। वस्तुतः ये दोनों रूप क्रमश: 'या' और 'गम्' धातु से निःसृत हैं। 'या' धातु के स्थान पर गम् धातु का 'गया' शब्द प्रचलित हो गया है। इस प्रकार के परिवर्तन को संस्कृत में 'आदेश' कहा गया है। वहाँ भी 'दृश' धातु का 'पश्य' ( आदेश परिवर्तन ) हो जाता है और शेष लकारों में 'दृश' ही रहता है। इसी प्रकार अँगरेज़ी में 'गो' ( go ) का भूतकाल वेण्ट ( went ) है, जिसका किसी भी प्रकार से 'गो' ( go ) से सम्बन्ध प्रमाणित नहीं किया जा सकता।
' प्रकृति ' प्रत्यय
प्रत्यय के भेद/प्रकार Pratyay ke Bhed
प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं-
- कृदन्त
- तद्धित
- संस्कृत प्रत्यय
- हिन्दी प्रत्यय
- विदेशज् प्रत्यय
संस्कृत-प्रत्यय Sanskrit Suffix
कृत् प्रत्यय
धातु |
यौगिक शब्द |
अर्थ |
धातु |
यौगिक शब्द |
अर्थ |
पठ |
पठित |
पढ़ा हुआ |
कृ |
कृत |
किया हुआ |
स्ना |
स्नान |
स्नात किया हुआ |
तृप |
तृप्त |
सन्तुष्ट हुआ |
गम |
गत |
गया हुआ |
दा |
दत्त |
को दिया हुआ |
वस |
वसित |
बसा हुआ |
मृ |
मृत |
मरा हुआ |
नम |
नत् |
झुका हुआ |
सिद्द |
सिद्ध |
पूरा किया हुआ |
जन |
जात |
पैदा हुआ |
ह |
हृत |
हरण किया गया |
अर्च |
अर्चित |
प्रार्थना किया हुआ |
अधि |
अधीत |
पढ़ा हुआ |
हिंदी में इनका प्रयोग विशेषण बनाने में किया जाता है।
क्तिन् ' प्रत्यय: यह प्रत्यय भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जैसे- इसमे 'क्तिन' के स्थान पर 'ति' रह जाता है और कभी-कभी दूसरे रूप में भी बदल जाता है; नीचे देखें: -
धातु |
यौगिक शब्द |
धातु |
यौगिक शब्द |
तृप |
तृप्ति |
कृ |
कृति |
मुच |
मुक्ति |
नी |
नीति |
दृश् |
दृष्टि |
तुश |
तृष्टि |
तव्य प्रत्यय: इसका प्रयोग संज्ञा और विशेषण बनाने के लिए किया जाता है। संस्कृत में इनकी संख्या अत्यधिक है; नीचे देखें :-
धातु |
यौगिक शब्द |
धातु |
यौगिक शब्द |
कृ |
कर्तव्य |
पठ् |
पठितव्य |
कथ |
कथितव्य |
गम |
गन्तव्य |
दृश् |
द्रष्टव्य |
रक्ष |
रक्षितव्य |
अनीय 'प्रत्यय: इसका प्रयोग विशेषण बनाने के लिए किया जाता है; नीचे देखें: -
धातु |
यौगिक शब्द |
धातु |
यौगिक शब्द |
कृ |
करणीय |
चि |
चयनीय |
कथ |
रमणीय |
शुच |
शोचनीय |
गम् |
गमनीय |
चिन्तु |
चिन्तनीय |
कथ |
कथनीय |
रक्ष |
रक्षणीय |
दृश |
दर्शनीय |
गुप् |
गोपनीय |
यत् प्रत्यय: इसमें 'तू' का लोप हो जाता है तथा 'य' शेष रहता है। इसका अर्थ 'के योग्य' है; नीचे देखें:-
धातु |
यौगिक शब्द |
धातु |
यौगिक शब्द |
कृ |
कार्य |
दा |
देय |
पठ |
पाठ्य |
लभ |
लभ्य |
वध |
वध्य |
गम |
गम्य |
धा |
धेय |
|
|
तृच् ' प्रत्यय- इसमें केवल 'तृ' शेष रहता है; नीचे देखें:-
धातु |
यौगिक शब्द |
धातु |
यौगिक शब्द |
कृ |
भर्त्तृ |
दा |
दातृ |
पठ |
कर्तृ |
पा |
पितृ |
अकप्रत्यय: इसका प्रयोग कर्तवाचक संज्ञा बनाने के लिए किया जाता है इसमें कहीं-कहीं स्वर-परिवर्तन होता है; नीचे देखें
धातु |
यौगिक शब्द |
धातु |
यौगिक शब्द |
कृ |
कारक |
रक्ष |
रक्षक |
वच |
वाचक |
पठ |
पाठक |
लिख |
लेखक |
गै |
गायक |
घञ् ' प्रत्यय: इससे अकारान्त पुल्लिंग शब्द बनते हैं। धातु के स्वर में परिवर्तन होता है नीचे देखें:
धातु |
यौगिक शब्द |
धातु |
यौगिक शब्द |
कृ |
कार |
चुर |
चोर |
मुह |
मोह |
सृप |
सर्प |
धृ |
धर |
भृ |
भर |
तद्धित प्रत्यय
|
मूल शब्द |
निष्पन्न शब्द |
मूल शब्द |
निष्पन्न शब्द |
अ |
गुरु शक्ति कुशल |
गौरव शाक्त कौशल |
मुनि मृदु अर्ज |
मौन मार्दव आर्जव |
आयन |
वत्स कृष्ण |
वात्स्यायन कृष्णायन |
लंका तिलक |
लंकायण तिलकायन |
इक |
मुख मन निसर्ग तर्क प्रारम्भ |
मौखिक मानसिक नैसर्गिक तार्किक प्रारम्भिक |
मातृ इच्छा मास देव प्रथम |
मातृक ऐच्छिक मासिक दैविक प्राथमिक |
इत |
पुष्प चिन्ता सम्बन्ध |
पुष्पित चिन्तित सम्बन्धित |
मोह तृषा खण्ड |
मोहित तृषित खण्डित |
इम |
पश्च |
पश्चिम |
अग्र |
अग्रिम |
इमा |
हरित नील धवल |
हरीतिमा नीलिमा धवलिमा |
महा शुक्ल अरुण |
महिमा शुक्लिमा अरुणिमा |
इय |
क्षत्र |
क्षत्रिय |
राष्ट्र |
राष्ट्रीय |
इष्ठ |
धर्म भू |
धर्मिष्ठ भूमिष्ठ |
बल प्रति |
बलिष्ठ प्रतिष्ठ |
ई |
लोभ भोग वसन्त |
लोभी भोगी वसन्ती |
काम विराग अनुराग |
कामी विरागी अनुरागी |
ईन |
कुल प्राच |
कुलीन प्राचीन |
नव काल |
नवीन कालीन |
ईय |
मत् देश पाणिनि भवत |
मदीय देशीय पाणिनीय भवदीय |
नगर भारत स्वर्ग महान |
नगरीय भारतीय स्वर्गीय महनीय |
एय |
वनिता वाराणसी |
वनिता वाराणसेय |
कुन्ती राधा |
कौन्तेय राधेय |
इका |
काशी आकाश |
काशिका आकाशिका |
प्रकाश प्रहार |
प्रकाशिका प्रहारिका |
क |
बाल लेख |
बालक लेखक |
नीति चित्र |
नीतिक चित्रक |
तः |
अन्त वस्तु विशेष |
अन्ततः वस्तुतः विशेषतः |
मूल फल सामान्य |
मूलतः फलतः सामान्यतः |
ता |
सुन्दर कुरूप मधुर शिशु उदार |
सुन्दरता कुरूपता मधुरता शिशुता उदारता |
लघु धवल कवि मानव दानव |
लघुता धवलता कविता मानवता दानवता |
त्व |
सती स्त्री नर |
सतीत्व स्त्रीत्व नरत्व |
पुरुष लघु अस्ति |
पुरुषत्व लघुत्व अस्तित्व |
त्र |
कु तत् |
कुत्र तत्र |
यत सर्व |
यत्र सर्वत्र |
था |
सर्व तत् |
सर्वदा तथा |
यत अन्य |
यथा अन्यथा |
दा |
सर्व यत् कत् |
सर्वदा यदा कदा |
फल तत एक |
फलदा तदा एकदा |
धा |
द्वि |
द्विधा |
बहु |
बहुधा |
मान् |
हन ज्योतिः बुद्धि |
हनुमान् ज्योतिष्मान् बुद्धिमान् |
शक्ति श्री ज्योति |
शक्तिमान् श्रीमान् ज्योतिमान् |
वान् |
धन श्रद्धा लक्ष्मी रूप |
धनवान् श्रद्धावान् लक्ष्मीवान् रूपवान् |
मूल्य गुण भाग्य लज्जा |
मूल्यवान् गुणवान् भाग्यवान् |
वत् |
पुत्र मात्र |
पुत्रवत् |
ब्राह्मण |
ब्राह्मणवत् |
वी |
तेजः तपः |
तेजस्वी तपस्वी |
यशः मनः |
यशस्वी मनस्वी |
श |
कर्क |
कर्कश |
तर्क |
तर्कश |
शः |
शत बहु |
शतशः बहुशः |
क्रम अक्षर |
क्रमशः अक्षरशः |
सात् |
भूमि अग्नि |
भूमिसात् अग्निसात् |
आत्म भूमि |
आत्मसात् भूमिसात् |
य |
सम् प्राची |
साम्य प्राच्य |
शरण प्रतीच |
शरण्य प्रतीच्य |
ल |
वत्स |
वत्सल |
बहु |
बहुल |
मय |
मधु तपः अन्न प्रेम |
मधुम पोमय अन्नमय प्रेमम |
दया शान्ति आनन्द आत्म |
दयामय शान्तिमय आनन्दमय आत्ममय |
हिन्दी प्रत्यय
हिन्दी के प्रत्ययों को भी संस्कृत के समान दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता:
- कृत ' प्रत्यय
- तद्धित 'प्रत्यय
कृत् प्रत्यय
कृदन्त ( कृत् ) प्रत्यय
- लूट् + अ = लूट
- खेल् + अ = खेल
- हार् + अ = हार
- रगडू + अ = रगड़
- पहुँच् + अ = पहुँच
- पटक् + अ = पटक
- जीत् + अ = जीत
- दौड़ + अ = दौड़
Ø(2 ) अक्कड़ - इस प्रत्यय से ' कर्त्तृवाचक कृदन्त ' बनाया जाता है।
- पी + अक्कड़ = पिअक्कड़
- खेल् + अक्कड़ = खेलक्कड़
- घूम् + अक्कड़ = घुमक्कड़
- बूझ् + अक्कड़ = बुझक्कड़
- लडू + अन्त = लड़न्त
- लिख + अन्त = लिखन्त
- बढ़ + अन्त = बढ़न्त
- भिडू + अन्त = भिड़न्त
- रट् + अन्त = रटन्त
- पिट् + अन्त = पिटन्त
- पढू + अन्त = पढ़न्त
- पठ् + अन्त = पठन्त
- जल + अन = जलन
- दा + अन = दान
- खा + अन = खान
- ले + अन = लेन
- सह + अन = सहन
- दे + अन = देन
- भृ + अण =भरण
- रक्ष + अण = रक्षण
- जल + अना =जलना
- ले + अना = लेना
- सह् + अना =सहना
- दौडू + अना = दौड़ना
- पढ़ + अना = पढ़ना
- लिख + अना = लिखना
- रो + अना = रोना
- खा + अना = खाना
- दे + अना = देना
- गढ़ + अना = गढ़ना
- मेल् + आ = मेला
- घेर + आ = घेरा
- मार् + आ = मारा
- बैठ् + आ = बैठा
- पड् + आ = पड़ा
- रूठ् +आ = रूठा
- सूज् + आ = सूजा
- बाध् + आ = बाधा
- झूल् + आ = झूला
- झाडू +आ = झाड़ा
- भँज् + आ = भँजा
- खेल + आई = खेलाई
- चढू + आई = चढ़ाई
- लिख + आई = लिखाई
- पढ् + आई = पढ़ाई
- लड् + आई = लड़ाई
- खिल् +आई = खिलाई
- दिख + आऊ = दिखाऊ
- टिक + आऊ = टिकाऊ
- खा + आऊ = खाऊ
- उड् + आऊ = उड़ाऊ
- उठ् + आन = उठान
- थक् + आन = थकान
- चलू + आन = चलान
- मिल् + आन = मिलान
- लग + आव = लगाव
- जम + आव = जमाव
- रख =आव =रखाव
- घूम् + आव = घुमाव
- कट् + आव = कटाव
- पड + आव = पड़ाव
- छल + आवा = छलावा
- पहिर् + आवा = पहिरावा
- बहक् + आवा = बहकावा
- भूल + आवा = भुलावा
- सुह् + आवना = सुहावना
- डर आवना = डरावना
- लुभ + आवना = लुभावना
- भूल +आवना = भुलावना
- तैर + आक = तैराक
- लडू + आका = लड़ाका
- उड़ + आकू = उड़ाकू
- चट् + आक = चालाक
- लडू + आकू = लड़ाकू
- पेल् + आक् = पेलाक्
- मिल् + आप = मिलाप
- पूज् + आपा = पुजापा
- बन् + आवट = बनावट
- दिख +आवट =दिखावट
- लिख् + आवट= लिखावट
- मिल् + आवट = मिलावट
- बौखलू + आहट = बौखलाहट
- घबर् + आहट = घबराहट
- लड़खडू + आहट =लड़खड़ाहट
- झनझन् + आहट= झनझनाहट
- पी + आस = प्यास
- निकल + आस =निकास ( ' ल ' का लोप )
- मीठा + आस = मिठास
- खट्टा + आस =खटास ( ' ट् ' का लोप )
- मर् + इयल = मरियल
- अड् + इयल = अड़ियल
- सडू + इयल = सड़ियल
- दद् + इयल = दढ़ियल
- छल् + इया =छलिया
- घट् + इया =घटिया
- जडू + इया =जड़िया
- बढ़ + इया = बढ़िया
- घुड़क् + ई = घुड़की
- धमक् + ई = धमकी
- मर + ई = मरी
- गिर + ई = गिरी
- फाँस + ई =फाँसी
- गाँस् + ई = गाँ
- लग् + ई = लगी
- खाँस् + ई = खाँसी
- मार् + ऊ = मारू
- बिगाडू + ऊ = बिगाडू
- काट् + ऊ = काटू
- उतार् + ऊ = उतारू
- लूट् + एरा = लुटेरा
- बसू + एरा बसेरा
- हँस + ऐया = हँसैया
- बच् + ऐया = बचैया
- रख् + ऐया रखैया
- रो + ऐया रोवैया
- लडू + ऐत = लड़
- बिगडू + ऐत = बिगड़त
- भाग् + ओड़ = भगोड़
- हँस् + ओड़ = हँसोड़
- भाग् + ओड़ा = भगोड़ा
- हँस् + ओड़ा = हँसोड़ा
- चुन् + औती = चुनौती
- फिर् + औती = फिरौती
- समझ + औता = समझौता
- मन् + औती = मनौती
- डर् + आवनी = डरावनी
- खेल + औना = खेलौना
- मिच् + औनी = मिचौनी ( आँखमिचौनी )
- डर् + औनी = डरौनी
- छीलू + का = छिलका
- फूल् + का = फुलका
तद्धित प्रत्यय
विदेशज प्रत्यय
भाषा अर्थ और परिभाषा | bhasha ki paribhasha
भाषा शब्द - शास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन
संस्कृत के प्रमुख ' तद्धित ' प्रत्यय | tadhit suffix of Sanskrit
हिन्दी के प्रमुख ' तद्धित ' प्रत्यय |Hindi's main 'tadhit' suffix
भारतीय संविधान में citizenship क्या है ?नागरिकता acquisition और termination प्रोसेस क्या है ?
मौलिक कर्तव्य क्या है ?मौलिक अधिकार एवं नीति निदेशक तत्व में अन्तर