Type Here to Get Search Results !

टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज TCS Inspirational Success Story

Tata Consultancy Service: ब्रांड फिनान्स ने हाल ही में ब्रांड वैल्यू के मामले में टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस )को आईटी सेक्टर की दुनिया की नंबर दो कंपनी घोषित किया है । महज 50 लाख रुपए की पूंजी से शुरुआत करने वाली टीसीएस की ब्रांड वैल्यू आज 1264 अरब रुपए की हो चुकी है । आख़िर TCS ने यह मुकाम कैसे हासिल किया , इसी की कहानी टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज ( TCS ) की  Inspirational Success Story 

Tata Consultancy Service: ब्रांड फिनान्स ने हाल ही में ब्रांड वैल्यू के मामले में टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस )को आईटी सेक्टर की दुनिया की नंबर दो कंपनी घोषित किया है। महज 50 लाख रुपए की पूंजी से शुरुआत करने वाली टीसीएस की ब्रांड वैल्यू आज 1264 अरब रुपए की हो चुकी है।आख़िर TCS ने यह मुकाम कैसे हासिल किया, इसी की कहानी टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (TCS) की  Inspirational Success Story 

टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज ( TCS ) की Success Story 

TCS की गर्व की कहानी

1960 का समय ... उस वक्त भारत में हिन्दुस्तान एम्बेस्डर कार का वेटिंग पीरियड चार साल तो पद्मिनी फिएट का 12 साल तक था। टेलीविजन भारत के 7 शहरों तक सीमित था। इस दौर में भी जेआरडी टाटा की नजरें कहीं दूर भविष्य पर टिकी हुई थीं। 

उन्होंने टाटा समूह की विभिन्न कंपनियों की डेटा प्रोसेसिंग के लिए एक अलग से कंप्यूटिंग डिविजन की शुरुआत करने का फैसला किया। भारत जैसे गरीब देश के लिए टेक्नोलॉजी से भरी कंप्यूटर की दुनिया में प्रवेश करने का विचार ही अपने आप में एक साहसिक कदम था। यह भारत में कंप्यूटिंग इंडस्ट्री की शुरुआत थी। 

Read More: MP की चंद्रकली मरकाम ने बदली 23 गांवों की तस्वीर

TCS कैसे हुआ टीसीएस का जन्म ?

जेआरडी के विश्वस्त सहयोगी और उनकी छोटी बहन के पति कर्नल लेसली सावने बहुत दिनों से इस बात को लेकर परेशान थे कि Tata Group की सभी कंपनियों में मैन्युअली रिकॉर्ड्स च डेटा को संभालने में कितनी कवायद करनी पड़ती है। तो उन्होंने एक दिन जेआरडी से पूछा कि क्या सभी कंपनियों का रिकॉर्ड्स एक ही जगह पर नहीं रखा जा सकता? 

जेआरडी को लेसली की इस बात में दम नजर आया और उन्होंने 1962 में एक ऐसी यूनिट शुरू करने का फैसला किया जो समूह की सभी कंपनियों की डेटा प्रोसेसिंग को लेकर जरूरी सेवा दे सके 

Read More: स्टीफन हॉकिंग जीवनी | Stephen William Hawking biography in Hindi

50 लाख की पूंजी और कर्मचारी केवले 20 

50 लाख की शुरुआती पूंजी के साथ इस कंप्यूटिंग डिविजन की शुरुआत की गई। कार्यालय मुंबई स्थित बेल्लार्ड एस्टेट में खोला गया। शुरुआत में केवल 20 कर्मचारी नियुक्त किए गए थे जो ग्रुप की ही विभिन्न कंपनियों में कार्य करने वाले लोग थे।उस समय स्थिति यह थी कि कोई भी इस यूनिट में काम करने को इच्छुक नहीं था। शुरू में इस यूनिट की किसी को जरूरत भी महसूस नहीं हुई, क्योंकि टाटा की हर कंपनी अपना मुख्य डेटा अपने पास ही रखना चाहती थी।

उधार के कंप्यूटर से शुरुआती काम

साल 1964 तक भारत में कंप्यूटर्स बहुत कम संख्या में उपलब्ध थे। उस समय केवल दो ही कंपनियां थीं-आईबीएम और आईसीएल। उस वक्त आईबीएम डेटा सेंटर ने यूनिट को अपना एक कंप्यूटर आईबीएम 1401 कार्य करने को मुहैया करवा दिया। दो साल इसी से निकल गए। 1967 में यूनिट का नाम 'टाटा कंप्यूटर सेंटर' रखा गया। और अंततः 1 अप्रैल 1968 को सेंटर की जगह टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज ( TCS ) अस्तित्व में आई।

Read More: डॉ विक्रम साराभाई जीवनी | Vikram Ambalal Sarabhai biography in Hindi

अब जानते है कि टाटा consultancy ने यह से किया कैसे 

शुरू में डेटा प्रोसेसिंग से ज्यादा कंसल्टेंसी पर जोर 

टीसीएस को डेटा प्रोसेसिंग यूनिट के रूप में शुरू किया गया था। लेकिन उस दौर में किसी भी कंपनी को डेटा प्रोसेसिंग को लेकर इतनी चिंता नहीं होती थी। ऐसे में मैनेजमेंट कंसलटेंट पर फोकस किया गया। अब कंसलटेंट के लिए दूसरी कंपनियां आने लगीं। 

जब कोई कंपनी मैनेजमेंट कंसलटेंट लेने के लिए आगे आती तो बाद में बेहतर मैनेजमेंट के लिए उसे ऑटोमेशन और इलेक्ट्रॉनिक डेटा प्रोसेसिंग का सुझाव दिया जाता। यह आइडिया काम कर दिया। 

अनौपचारिक समूह 'थिंक टैंक' ने निभाई अहम भूमिका 

टीसीएस के दूसरे सीईओ एस. रामदोरई ने एक गैर आधिकारिक समूह बनाया जो सप्ताह में एक बार अनौपचारिक चर्चा करता और अपने आइडियाज देता। इसे कॉरपोरेट जगत में थिंक टैंक नाम दिया गया था। इसने टीसीएस को रणनीतिक मोर्चे पर आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। इससे टीसीएस का जो सालाना राजस्व 1995 में 12.5 करोड़ डॉलर था, वह 1999 में बढ़कर 42 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया और इसके बाद कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

Read More: जीत आपकी 100 बेस्ट अनमोल वचन

देश में समस्याएं आई तो हासिल में आउटसोर्सिंग मे महारत 

शुरू में बिजनेस को लेकर भारत में अनेक दिक्कतें थीं। इनके मद्देनजर टीसीएस के पहले सीईओ एफसी कोहली ने शुरू में ही आउटसोर्सिंग के महत्व को पहचान लिया था। कंपनी ने आउटसोर्सिंग कांट्रैक्ट लेने शुरू कर दिए। टीसीएस डेवलपमेंट वर्क का एक हिस्सा भारत में करती और फिर अपने प्रोग्रामर्स को विदेशों में भेजकर बाकी का काम पूरा करती। आज टीसीएस के कुल बिजनेस में से 90 फीसदी बिजनेस भारत के बाहर से आता है। 

4.कंप्यूटर प्रतिभाओं पर कंपनी ने चार स्तरों पर किया काम

प्रतिभाओं को लेकर टीसीएस ने चार स्तरों पर काम किया-सबसे पहले प्रतिभाओं की पहचान करना, उन्हें आकर्षक वेतन भत्तों से कंपनी में शामिल करना, अपनी जरूरतानुसार प्रशिक्षण देना और उन्हें बनाए रखने के लिए विशेष प्रयास करना। चूंकि टीसीएस का फोकस ग्लोबल मार्केट पर है। इसलिए प्रशिक्षण कार्यक्रम में सॉफ्ट स्किल्स (व्यक्तित्व विकास) पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है, ताकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वे बेहतर परफॉर्म कर सकें।

Read More: क्या आप जानते हैं सभी सफल लोग किताबें क्यों पढ़ते हैं?

भारत का पहला बिलियन डॉलर IPO

टीसीएस ने जुलाई 2004 में आईपीओ जारी किया था। यह उस समय भारतीय कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा सिंगल आईपीओ था। 5.55 करोड़ शेयर्स ऑफर किए गए थे और उनके माध्यम से कंपनी ने 1.2 अरब डॉलर ( उस समय 54 अरब रुपए ) जुटाए थे।

और क्या पहला पहला ? 

  • ( 1968 ) भारत की पहली स्वदेशी सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनी
  • ( 1973 ) भारत की पहली सॉफ्टवेयर कंपनी जिसने अमेरिका में यूनिट शुरू की
  •  ( 1981 ) सॉफ्टवेयर प्रोसेस इंजीनियरिंग रिसर्च सेंटर शुरू करने वाली पहली कंपनी
  • ( 2001 ) ऐसी पहली कंपनी है जिसने ग्लोबल डिलिवरी सेंटर स्थापित किया
  •  ( 2002-03 ) एक अरब डॉलर राजस्व वाली पहली भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनी

 कम्पनी के आंकड़े 2020-21

  • 167311 करोड़ रुपए का राजस्व
  • नेट इनकम - 32562
  • कुल कर्मचारी - 528748
  • आफ़िस 4 6 देशों में 289

टीसीएस के दो सबसे प्रमुख स्तंभ ... 

फकीरचंद कोहली और एस. रामदोरई 

आज हम जिस टीसीएस को जानते हैं, उसे आकार देने में मुख्य भूमिका दो लोगों ने निभाई। एक, फकीरचंद कोहली (एफसी कोहली)(टीसीएस के पहले सीइओ) ने जिन्होंने 1969 में जनरल मैनेजर के रूप में टीसीएस ज्वॉइन की थीं। फिर सीईओ बने और 1996 तक इस पद पर रहे। 

इन्होंने टीसीएस की ग्लोबल कंपनी के रूप में बुनियाद रख भारतीय आईटी सेक्टर के लिए मार्ग प्रशस्त किया। उनके बाद 1996 से 2009 तक एस. रामदोरई सीईओ रहे। उन्होंने इसे 16 करोड़ डॉलर से 6 अरब डॉलर की कंपनी में बदल दिया।

जब अपने ही ग्रुप के ज्वॉइंट वेंचर की वजह से बंद होने वाली थी टीसीएस 

बात 1978 की हैं। उस समय टाटा सन्स ने अमेरिकी कंप्यूटर कंपनी बरो कॉर्पोरेशन के साथ जॉइंट वेंचर ( टाटा-बरो ) बना लिया और टीसीएस के 25 प्रमुख लोगों को टाटा-बरो भेज दिया गया। के ऐसे में टीसीएस के सामने दो विकल्प थे। आसान विकल्प था-टाटा-बरो में विलय का। कठिन विकल्प था टीसीएस अलग काम कर सकती है, लेकिन वह उन कस्टमर्स पर हाथ नहीं डाल सकती, जो पहले से ही बरो के हैं। उस समय बरो का आधिपत्य था। लेकिन टीसीएस के सीईओ एफसी कोहली ने दूसरे विकल्प को चुना।

Read More: 

बड़े काम की छोटी बातें |छोटी बातें, बड़े काम की

Tim Minchin: बड़े सपने देखिए और छोटी चीजों को बड़े दिल से करिए

motivational thought: भूल को सही साबित करने की बजाय उसे स्वीकार करिए

Thanks for Visiting Khabar's daily update for More Topics Click Here


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.