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51 शक्तिपीठों में से एक माँ ज्वालामुखी देवी की कथा और यहां कैसे पहुचे?

ज्वालामुखी (ज्वालादेवी)देवी का भव्य मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा से लगभग 30 किलो दूर स्थित है। जिसकी ऊंचाई 557.66 मी (1,829.59 फीट)है। Jwalamukhi Mandir में माता की जोत निरंतर बिना किसी रुकावट के लगातार जलने के कारण भक्त इस मन्दिर को "जोतावाली का मंदिर"कह कर पुकारते है, और इस मंदिर को नगरकोट भी कहा जाता है।


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पांडवो को ज्वालादेवी सिद्धिदा (अंबिका) शक्तिपीठ मंदिर को खोजने का श्रेय दिया जाता है। उत्तर भारत की प्रसिद्ध नौ देवियों के दर्शन के दौरान चौथा दर्शन माँ ज्वाला देवी का ही होता है यह स्थान माता के इक्यावन शक्ति पीठों में से एक है। इस मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढ़ी हुई है।  

आइये जानते है माता सती के शक्तिपीठों में इस बार ज्वालादेवी सिद्धिदा (अंबिका) के 51 शक्तिपीठों में से एक माँ ज्वालामुखी देवी की कथा और यहां कैसे पहुचे के बारे में जानकारी।


Jwaladevi Shaktipeeth: हमारे धार्मिक ग्रंथ व पुराणों कि मान्यताओं के अनुसार जैसे - कालिकापुराण में 26, देवी भागवत पुराण में 108, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बतलाई है, जबकि शिवचरित्र में 51 शक्तिपीठ कि जानकारी मिलती है।


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Jwaladevi कैसे बने ये शक्तिपीठ पौराणिक कथा ?


प्राचीन मान्यताओं के जब हिमालई क्षेत्रों में राक्षसों ने अपना प्रभुत्व जमा लिया और ऋषि-मुनियों के यज्ञ पूजा विधि को खंडित करने लग गए, उन अत्याचारी राक्षसों से तंग आकर ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु की शरण ली तब भगवान विष्णु के तेज से जमीन पर तेज लपटें उठने लगी और उस आग में से एक छोटी बच्ची ने जन्म लिया जिन्हें "आदि शक्ति प्रथम शक्ति" माना जाता है।


उस छोटी लड़की का पालन-पोषण दक्ष प्रजापति के घर में हुआ,जिन्हे सती के नाम से जाना जाता है। जिन्हें बाद में भगवान शिव की अर्धांगिनी का स्थान मिला। एक बार की बात है राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया जिसे माता सती स्वीकार न कर सकीं और खुद को हवन कुंड में भस्म कर डाला।


जब भगवान शिव ने अपनी पत्नी की मृत्यु के बारे में सुना तो भगवान शिव ने विशाल और विकराल रूप धारण कर राजा प्रजापति के धड़ को सर से अलग कर दिया, तथा माता सती के वियोग में भगवान शिव ने उस जलते व शरीर को उठाकर तीनों लोकों में विचरण करने लगे। 


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जिसके कारण पूरे संसार में संतुलन बिगड़ने लगा बाद में देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण में जाकर इसका हल ढूंढने की विनती की, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को खंडित कर दिया तथा जिन-जिन स्थानों पर माता सती के अंग और आभूषण गिरे वह स्थान "शक्तिपीठों" के नाम से जाने जाते हैं ज्वालादेवी इन्ही शक्तिपीठों मे से एक है 


मान्यता है यहाँ देवी सती की जीभ गिरी थी। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहाँ पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहाँ पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं।  


इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सदियों पहले, एक चरवाहे ने देखा कि अमुक पर्वत से ज्वाला निकल रही है और फिर इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।


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अकबर और ध्यानु भगत की कथा 


मुगल काल बादशाह अकबर के समय हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता ज्वालादेवी का परम भक्त धानू भगत था, जोकि लगभग 1000 भक्तों के साथ माता के दर्शन के लिए जा रहा था। 


राजा के सिपाहियों ने इतने बड़े दल को देखा तो चांदनी चौक दिल्ली में उन्हें रोक लिया और बादशाह के सामने पेश किया। अकबर ने ध्यानु से पूछा इतने सारे लोगों के साथ कहां जा रहे हो तब ध्यानु ने नतमस्तक होकर जवाब दिया हम माता ज्वाला माई के दर्शन के लिए यात्रा पर जा रहे हैं। 


अकबर ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि ज्वालामाई कौन है? और वहां जाने से क्या होगा? भक्त ने उत्तर दिया की बादशाह ज्वालामाई संसार के पालन पोषण करने वाली माता है, और जो सच्चे मन से माता के दरबार में प्रार्थना लेकर जाता है उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा उनके स्थान पर बिना किसी तेल और बाती की अनंत ज्योति जलती रहती है और हम प्रतिवर्ष उनके दर्शनों के लिए जाते हैं।


अखबार ने माता की शक्ति को आजमाना चाह और कहा कि अगर तुम्हारी भक्ति सच्ची है, तो माता अपने भक्तों की लाज अवश्य रखेगी। बादशाह ने इम्तिहान लेने के लिए भक्तों के घोड़ों की गर्दन अलग कर दी और कहा कि अगर तुम्हारी भक्ति सच्ची है तो तुम्हारी माता घोड़ों की गर्दन को दोबारा जोड़ देगी जिसके कारण सारे दरबार में हंसी गूंज उठा।


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ध्यानू भक्त अपनी भक्ति पर अमिट विश्वास था। बादशाह से विनती कि राजन मुझे एक माह का समय दीजिए और मुझे मेरी यात्रा पर जाने की अनुमति दें और तब तक इन घोड़ों के धड़ और शरीर को सुरक्षित रखा जाए। बादशाह अकबर से अनुमति मिलने के बाद ध्यानू भक्त अपने साथी भक्तों के साथ यात्रा पर निकल पड़े। शक्ति पीठ ज्वालादेवी पर पहुंचने के बाद स्नान पूजन करने के बाद रात भर भक्तों ने माता का जगराता किया।


प्रातः काल ध्यानू माता के समीप उपस्थित हुआ और माता के समीप करुण-विलाप करते हुए बोलते है, है जगत जननी माँ अंबे आप अन्तर्यामी हैं, आज तेरी भक्ति की परीक्षा ली जा रही है मेरी लाज रखना और उस अहंकारी बादशाह अहंकार को दूर करो।


अगले ही दिन सारे घोड़े फिर से जिंदा हो गये, यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गए, और फिर से माता की शक्ति को चुनौती देने के लिए अपनी सेना सहित माता के शक्तिपीठ जा पहुँचा, वहां पहुच कर उसने अपने सैनिकों को माता की अन्त ज्वाला को जलने से रोकने के लिए पानी की नाली बना कर बुझाने का भरसक प्रयास किया।


अंत में शक्ति के आगे नतमस्तक हो गए और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी, और भेंट स्वरुप सवामन (पचास किलो) सोने का छतर चढ़ाया, जिसे उस अनन्त शक्ति ने स्वीकार नहीं किया और छत्र को जमीन पर जा पटका और साथ ही अनजाने धातु में परिवर्तित कर दिया। आप आज भी वह बादशाह अकबर का द्वारा चढ़ाया गया छतर ज्वाला देवी के मंदिर परिसर में देख सकते हैं


यह शक्तिपीठ अपने चमत्कार के साथ साथ अपनी सुंदरता, अपने आस-पास के इलाकों प्रसिद्ध मन्दिरों के लिए जाना जाता है, इस मंदिर का मुख्य द्वार अति सुन्दर और भव्य बनाया गया है। मंदिर परिसर में बाई ओर अकबर द्वारा बनाई गई नहर को आज भी देखा जा सकता जिसको मंदिर के गर्भ द्वार के अंदर बने ज्योति को बुझाने के लिए बनाया गया था जिसे अकबर नहर के नाम से जाना जाता है 


मन्दिर से थोड़ी दूर ऊपर गुरु गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरखडिब्बी के नाम से जाना जाता है, य़ह स्थान गुरु गोरखनाथ के यहां आने और उनके चमत्कार, और एक पानी का कुंड जिसे दूर से देखने पर खोलता हुआ पानी महसूस होता है परंतु आश्चर्यजनक बात यह है कि वास्तव में कुंड ठंडे पानी का स्रोत है। Jwaladevi Shaktipeeth के कुछ दूर लगभग 4.5 व 5 किलोमिटर दूरी पर क्रमश नगिनी माता का मंदिर और रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पि है।


Jwaladevi Shaktipeeth कैसे पहुंचे ? 


यहां पहुचने के लिए सड़क मार्ग के साथ-साथ वायु और रेल मार्ग का प्रयोग किया जा सकता है। यात्रियों के दिल्ली से ज्वालाजी के लिए सीधे बस सुविधा उपलब्ध है, यात्री अपनी निजी व हिमाचल परिवहन की बसों की सेवा ले सकते है। बात करें अगर रेलवे मार्ग से तो पंजाब व अन्य प्रदेश के यात्री पठानकोट पहुंचकर वहां से चलने वाली ट्रेन कि मदद से मरांदा होते हुए पालमपुर आ सकते है, फिर यहां से कार व बस का प्रयोग करके मंदिर पहुच सकते है 


अगर आप वायु मार्ग से जाने के इच्छुक हैं तो गगल हवाई अड्डा ज्वालाजी मंदिर से 46 किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है। यहा से मंदिर तक जाने के लिए कार व बस सुविधा उपलब्ध है।


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