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तीस ग्यान वर्धक बातें जो आपके जिंदगी में काम आयेंगी

हारिए न हिम्मत Don't Give Up: दूसरे के छिद्र देखने से पहले अपने छिद्रों को टटोलो। किसी और की बुराई करने से पहले यह देख लो कि हममें तो कोई बुराई नहीं है। यदि हो तो पहले उसे दूर करो। दूसरों की निंदा करने में जितना समय देते हो उतना समय अपने आत्मोत्कर्ष (Self Exaltation) में लगाओ। 


तब स्वयं इससे सहमत होगे कि परनिंदा से बढ़ने वाले द्वेष को त्याग कर परमानंद प्राप्ति की ओर बढ़ रहे हो। संसार को जीतने की इच्छा करने वाले मनुष्यों! पहले अपने को जीतने की चेष्ठा करो। यदि तुम ऐसा कर सके तो एक दिन तुम्हारा विश्व विजेता बनने का Dream स्वप्न पूरा होकर रहेगा। 


पंडित श्री राम शर्मा की अनमोल वचन,हिम्मत ना हारिये | Himmat Na Haariye


तुम अपने जितेंद्रिय रूप से संसार के सब प्राणियों को अपने संकेत पर चला सकोगे। संसार का कोई भी जीव तुम्हारा विरोधी नहीं रहेगा। तो आइये नित्य पढ़ें Read Regularly, हारिए न हिम्मत (Don't Give Up), 30 दिन तीस ग्यान वर्धक बातें, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य अनमोल वचन-


तीस ग्यान वर्धक बातें जो आपके जिंदगी में काम आयेंगी 


आध्यात्मिक चिंतन अनिवार्य Spiritual Contemplation Essential


जो लोग आध्यात्मिक चिंतन से विमुख होकर केवल लोकोपकारी कार्य में लगे रहते हैं, वे अपनी ही सफलता पर अथवा सद्गुणों पर मोहित हो जाते हैं। वे अपने आपको लोक सेवक के रूप में देखने लगते हैं। ऐसी अवस्था में वे आशा करते हैं कि सब लोग उनके कार्यों की प्रशंसा करें, उनका कहा मानें। 


उनका बढ़ा हुआ अभिमान उन्हें अनेक लोगों का शत्रु बना देता है। इससे उनकी लोकसेवा उन्हें वास्तविक लोक सेवक न बनाकर लोक विनाश का रूप धारण कर लेती है। आध्यात्मिक चिंतन के बिना मनुष्य में विनीत भाव नहीं आता, और न उसमें अपने आपको सुधारने की क्षमता रह जाती है। वह भूलों पर भूल करता चला जाता है। और इस प्रकार अपने जीवन को विकल बना देता है।


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मानवमात्र को प्रेम करो Love Mankind


हम जिस भारतीय संस्कृति, भारतीय विचारधारा का प्रचार करना चाहते हैं, उससे आपके समस्त कष्टों का निवारण हो सका है। राजनीतिक शक्ति द्वारा आपके अधिकारों को तय कर सकती है । पर जिस स्थान से हमारे सुख-दुःख तय होती है उसका नियंत्रण राजनीतिक शक्ति नहीं करती। यह कार्य आध्यात्मिक उन्नति से ही संम्पन्न हो सकता है।


मनुष्य को मनुष्य बनाने की वास्तविक शक्ति भारतीय संस्कृति में ही है। यह संस्कृति हमें सिखाती है कि मनुष्य-मनुष्य से प्रेम करने को पैदा हुआ है, लड़ने-मरने को नहीं। अगर हमारे सभी कार्यक्रम ठीक ढंग से चलते रहे तो भारतीय संस्कृति का सूर्योदय अवश्य होगा।


अंतरात्मा का सहारा पकड़ो Hold on to Your Conscience


यदि तुम शांति, सामर्थ्य और शक्ति चाहते हो तो अपनी अंतरात्मा का सहारा पकड़ो। तुम सारे संसार को धोखा दे सकते हो किंतु अपनी आत्मा को कौन धोखा दे सका है। यदि प्रत्येक कार्य में आप अंतरात्मा की सम्मति प्राप्त कर लिया करेंगे तो विवेकपथ नष्ट न होगा। 


दुनिया भर का विरोध करने पर भी यदि आप अपनी अंतरात्मा का पालन कर सके तो कोई आपको सफलता प्राप्त करने से नहीं रोक सकता। जब कोई मनुष्य अपने आपको अद्वितीय व्यक्ति समझने लगता है और अपने आपको चरित्र में सबसे श्रेष्ठ मानने लगता है, तब उसका आध्यात्मिक पतन होता है


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जीवन को यज्ञमय बनाओ Make life Sacrificial


मन में सबके लिए सद्भावनाऐं रखना, संयमपूर्ण सच्चरित्रता के साथ समय व्यतीत करना, दूसरों की भलाई बन सके उसके लिए प्रयत्नशील रहना, वाणी को केवल सत्प्रयोजनों के लिए ही बोलना, न्यायपूर्ण कमाई पर ही गुजारा करना, भगवान का स्मरण करते रहना, अपने कर्तव्य पथ पर आरुढ़ रहना, अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों में विचलित न होना यही नियम हैं जिनका पालन करने से जीवन यज्ञमय बन जाता है। मनुष्य जीवन को सफल बना लेना ही सच्ची दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता हैं। जब तक हम में अहंकार की भावना रहेगी तब तक त्याग की भावना का उदय होना कठिन है।


हँसते रहो, मुस्कुराते रहो Keep Smiling


उठो! जागो! रुको मत! जब तक की लक्ष्य न प्राप्त न हो जाए। कोई दूसरा हमारे प्रति बुराई करें या निंदा करे, उद्वेगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से बैर आगे नहीं बढ़ता। अपने ही मन में कह लेना चाहिए कि इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन। जो अपने कर्तव्य कार्य में जुटा रहता है और दूसरों के अवगुणों की खोज में नहीं रहता उसे आंतरिक प्रसन्नता रहती है। 


जीवन में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं। हँसते रहो, मुस्कुराते रहो। ऐसा मुख किस काम का जो हँसे नहीं, मुस्कराए नहीं। जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहत हैं। उनको दूसरों की आलोचनाओं से चिढ़ना नहीं चाहिए। 


आत्म समर्पण करो Surrender You Have


तुम्हें यह सीखना होगा कि इस संसार में कुछ कठिनाइया हैं जो तुम्हें सहन करनी हैं। वे पूर्व कर्मों के फलस्वरुप तुम्हें अजेय प्रतीत होती है। जहाँ कहीं भी कार्य में घबराहट थकावट और निराशाऐं हैं, वहा अत्यंत प्रबल शक्ति भी है। अपना कार्य कर चुकने पर एक ओर खड़े होओ। कर्म के फल को समय की धारा में प्रवाहित हो जाने दो। 


अपनी शक्ति भर कार्य करो और तब अपना आत्मसमर्पण करो। किन्हीं भी घटनाओं में हतोत्साहित न होओ। तुम्हारा अपने ही कर्मों पर अधिकार हो सकता है। दूसरों के कर्मों पर नहीं। आलोचना न करो, आशा न करों, भय न करो, सब अच्छा ही होगा। अनुभव आता है और जाता है। खिन्न न होओ। तुम दृढ़ भित्ति पर खड़े हुए हो।


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मार्गदर्शन के लिए अपनी ही और देखो Look for Your Own Guidance


साक्षात्कार संपन्न पुरुष ना तो दूसरों को दोष लगाता है और ना अपने को अधिक शक्तिमान वस्तुओं से आच्छादित होने के कारण वह स्थितियों की अवहेलना करता है. अहंकार से उतना ही सावधान रहो जितना एक पागल कुत्ते से। जैसे तुम विश या विषधर सर को नहीं छोड़ते, उसी प्रकार सिद्धियों से अलग रहो और उन लोगों से भी जो इनका प्रतिवाद करते हैं। अपने मन और हृदय की संपूर्ण क्रियाओं को ईश्वर की ओर संचारित करो। 


दूसरों का विश्वास हमें अधिकाधिक असहाय और दुखी बनाएगा। मार्गदर्शन के लिए अपनी ही और देखो दूसरों की ओर नहीं। तुम्हारी सत्यता तुम्हें ग्रीन बनाएगी। हमारी दृढ़ता तुम्हें लक्ष्य तक ले जाएगी। 


अपने आप की समालोचना करो Criticize Yourself


जो कुछ हो, होने दो। तुम्हारे बारे में जो कहा जाए उसे कहने दो। तुम्हें यह सब बातें मृगतृष्णा के जल के समान आचार लगनी चाहिए। यदि तुमने संसार का सच्चा प्यार किया है तो इन बातों से तुम्हें कैसे कष्ट पहुंच सकता है। अपने आप की समालोचना में कुछ भी कसर मत रखना तभी वास्तविक उन्नति होगी। 


प्रत्येक क्षण और अवसर का लाभ उठाओ। मार्ग लंबा है। समय वेग से निकाला जा रहा है। अपने संपूर्ण आत्मबल के साथ कार्य में लग जाओ, लक्ष्य तक पहुंचेंगे। किसी बात के लिए भी अपने को खुद ना करो। मनुष्य में नहीं, ईश्वर में विश्वास करो। वह तुम्हें रास्ता दिखाएगा और सन्मार्ग सुझाएगा।


नम्रता, सरलता, साधुता, सहिष्णुता


सहिष्णुता का अभ्यास करो। अपने उत्तरदायित्व को समझो। किसी के दोषों को देखने और उन पर टीका टिप्पणी करने के पहले अपने बड़े-बड़े दोषों का अन्वेषण करो। यदि अपनी वाणी का नियंत्रण नहीं कर सकते तो उसे दूसरों के प्रतिकूल नहीं बल्कि अपने प्रतिकूल उपदेश करने दो।


सबसे पहले अपने घर को नियमित बनाओ क्योंकि बिना आचरण के आत्मा अनुभव नहीं हो सकता। नम्रता, सरलता साधुता, सहिष्णुता यह सब आत्मानुभव के प्रधान अंग है। दूसरे तुम्हारे साथ क्या करते हैं इसकी चिंता ना करो। आत्मा उन्नति में तत्पर रहो। यदि यह तथ्य समझ लिया तो एक बड़े रहस्य को पा लिया।


अंत करण के लिए धन को ढूंढो


तुम्हें अपने मन को सदा कार्य में लगाए रखना होगा। इसे बेकार न रहने दो पूर्णविराम जीवन को गंभीरता के साथ बिताओ। तुम्हारे सामने आत्माओं उन्नति का महान कार्य है और पास में समय थोड़ा है। यदि अपने को असावधानी के साथ भटकने दोगे तो तुम्हें सुख करना होगा और इससे भी बुरी स्थिति को प्राप्त होंगे।


धैर्य और आशा रखो तो शीघ्र ही जीवन की समस्त स्थिति का सामना करने की योग्यता तुम में आ जाएगी। अपने बल पर खड़े हो आओ यदि आवश्यक हो तो संसार समस्त संसार को चुनौती दे दो। परिणाम में हमारी हानि नहीं हो सकती। तुम केवल सबसे महान से महान संतुष्ट रहो। दूसरे भौतिक धन की खोज करते हैं और तुम अंत करण के धन को ढूंढो।


अकेला चलो


महान व्यक्ति सदैव अकेले चलते हैं और चले हैं और इस अकेलेपन के कारण ही दूर तक चले हैं। अकेले व्यक्तियों ने अपने सहारे ही संसार के महानतम कार्य संपन्न किए हैं। उन्हें एकमात्र अपनी ही प्रेरणा प्राप्त हुई है। वह अपने ही आंतरिक सुख से सदैव प्रफुल्लित रहे हैं। दूसरे से दुख मिटाने की उन्होंने कभी आता नहीं रखी। निज वृत्तियों में ही उन्होंने सहारा नहीं देखा


अकेलापन जीवन का परम सत्य है किंतु अकेलेपन से घबराना, जी तोड़ना, कर्तव्य पथ से हतोत्साहित या निराश होना सबसे बड़ा पाप है। अकेलापन आपके निजी आंतरिक प्रदेश में छुपी हुई महान हस्तियों को विकसित करने का साधन है। अपने ऊपर आश्रित रहने से आप अपनी उच्चतम शक्तियों को खोज निकालते हैं।


दूसरों पर निर्भर ना रहो 


जिस दिन तुम्हें अपने हाथ पैर और दिल पर भरोसा हो जावेगा उसी दिन तुम्हारी अंतरात्मा कहेगी कि, 'बाधाओं को कुचल कर तू अकेला चल अकेला।' जिन व्यक्तियों पर तुमने आशा के विशाल महल बना रखे हैं वह कल्पना के दोनों में बिहार करने के समान है। अस्थिर सारहीन खोखले हैं। अपनी आशा को दूसरों में संश्लिष्ट कर देना स्वयं अपनी मौलिकता का हास्य कर अपने साहब को पंगु कर देना है। जो व्यक्ति दूसरों की सहायता पर जीवन यात्रा करते हैं वह शीघ्र अकेला हो जाता है।


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प्रेम एक महान शक्ति है


प्रेम ही एक ऐसी महान शक्ति है जो प्रत्येक दिशा में जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक होती है। बिना प्रेम के किसी के विचारों में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। विचार तर्क वितर्क की सृष्टि नहीं है। विचारणा तथा विश्वास बहू काल के सत्संग से बनते हैं। अधिक समय की संगति का ही परिणाम प्रेम है इसीलिए विचारधारा अथवा विश्वास प्रेम का विषय है। 


यदि हम दूसरों पर विजय प्राप्त करके उनको अपने विचारधारा में वह आना चाहते हैं कौन उनके दृष्टिकोण को बदल कर अपनी बात मनवाना चाहते हैं, तो प्रेम का सहारा लेना चाहिए। तर्क और बुद्धि समय आगे नहीं बढ़ा  सकते। विश्वास रखिए कि आपकी प्रेम और सहानुभूति सभी बातों को सुनने के लिए दुनिया विवश होगी।


असफलताओं का कारण


हम दूसरों को बरबस अपनी तरह विश्वास, मत, स्वभाव एवं नियमों के अनुसार कार्य करने और जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य करते हैं। दूसरों को बरबस सुधार डालने, अपने विचार या दृष्टिकोण को जबरदस्ती थोपने से ना सुधार होता है ना ही आपका ही मन प्रसन्न होता है।


यदि हम अमुक व्यक्ति को दबाए रखेंगे तो अवश्य परोक्ष रूप से हमारी उन्नति हो जाएगी। अमुक व्यक्ति हमारी उन्नति में बाधक हैं। अमुक हमारी चुगली करता है, दोष निकालता है, मानहानि करता है। अतः हमें अपनी उन्नति न देखकर पहले अपने प्रतिपक्षी को रोके रखना चाहिए ऐसा सोचना और दूसरों को अपनी असफलताओं का कारण मानना, भ्रम मूलक है।


दुखद स्मृतियों को भूलो


जब मन में पुरानी दुख स्मृतियां सजग हो तो उन्हें भुला देने में ही रहता है। अप्रिय बातों को भुला ना आवश्यक है पूर्णविराम भुला ना उतना ही जरूरी है जितना अच्छी बात का स्मरण करना। कि यदि तुम शरीर से मन से और आचरण से स्वस्थ होना चाहते हो तो अस्वस्थता की सारी बातें भूल जाओ। 


माना कि किसी अपने ने ही तुम्हें चोट पहुंचाई है, तुम्हारा दिल दुखाया है, क्या तुम उसे लेकर मानसिक उधेड़बुन में लगे रहोगे अरे भाई उन कष्ट कारक अप्रिय प्रसंगों को भुला दो, उधर ध्यान न देकर अच्छे शुभ कर्मों से मन को केंद्र भूत कर दो चिंता से मुक्ति पाने का सर्वोत्तम उपाय दुखों को लाना ही है।


सुख दुखों के ऊपर स्वामित्व 


तुम सुख और दुख की अधीनता छोड़ उनके ऊपर अपना स्वामित्व स्थापना करो और उसमें जो कुछ उत्तम मिले उसे लेकर अपने जीवन को नित्य नया रसयुक्त बनाओ। जीवन को उन्नत करना ही मनुष्य का कर्तव्य है इसीलिए तुम भी उचित समझो सो मार्ग ग्रहण कर इस कर्तव्य को सिद्ध करो।


प्रतिकूलता से डरोगे नहीं और अनुकूलता ही को सर्वोच्च सम्मान कर बैठे रहोगे तो सब कुछ कर सकोगे। जो मिले उसी से शिक्षा ग्रहण कर जीवन को उच्च बनाओ। यह जीवन जो जो कुछ बनेगा क्यों तो आज जो तुम्हें प्रतिकूल प्रतीत होता है वह सब अनुकूल दिखने लगेगा और अनुकूलता आ जाने पर दुख मात्र की निवृत्ति हो जाएगी


बोलिए कम करिए अधिक


हमारी कोई सुनता नहीं, कहते-कहते थक गए पर सुनने वाले कोई सुनते ही नहीं अर्थात उन पर कुछ असर ही नहीं होता मेरी राय में इसमें सुनने वाले से अधिक दोष कहने वाले का है। कहने वाले करना नहीं जानते। वे अपनी और देखें और आत्मनिरीक्षण कार्य की शून्यता की साक्षी दे देगा वचन की सत्यता का सारा दारोमदार कर्म शीलता में है। 


आप चाहे बोले नहीं थोड़े ही बोले पर कार्य में जुट जाइए आप थोड़े ही दिनों में देखेंगे कि लोग बिना कहे आपकी और खींचे आ रहे हैं। अतः कहिये कम करिये अधिक। क्योंकि बोलने का प्रभाव तो क्षणिक होगा और कार्य का प्रभाव स्थाई होता है।


पौरुष की पुकार


साहस ने हमें पुकारा है। समय ने, युग ने, कर्तव्य ने, उत्तरदायित्व ने, विवेक ने, और उसने हमें पुकारा है। यह पुकार अनसुनी ना की जा सकेगी आत्म-निर्माण के लिए, नव निर्माण के लिए हम कांटों से भरे रास्तों का स्वागत करेंगे और आगे बढ़ेंगे! लोग क्या कहते हैं और क्या करते हैं इसकी चिंता कौन करे। 


अपनी आत्मा ही मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त है। लोग अंधेरे में भटकते हैं भटकते रहे। हम अपने विवेक के प्रकाश का अवलंबन कर स्वत आगे बढ़ेंगे। कौन विरोध करता है, कौन समर्थन? इसकी गणना कौन करें। अपनी अंतरात्मा अपना साहस अपने साथ है और वही करेंगे जो करना अपने जैसे सज्जन व्यक्तियों के लिए उचित और उपयुक्त है!


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पुरुषार्थ की शक्ति 


सुधारवादी तत्वों की स्थिति और भी उपहास्यपद है। धर्म अध्यात्म समाज एवं राजनीतिक क्षेत्रों में सुधार एवं उत्थान के नारे जोर शोर से लगाए जाते हैं। पर उन क्षेत्रों में जो हो रहा है जो लोग कर रहे हैं उसमें कथनी और करनी के बीच जमीन आसमान जैसा अंतर देखा जा सकता है। ऐसी दशा में उज्जवल भविष्य की आशा धूमिल ही होती चली जा रही है। 


क्या हम सब ऐसे ही समय की प्रतीक्षा में है ऐसे ही हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे। अपने को असहाय असमर्थ अनुभव करते रहे और स्थिति बदलने के लिए किसी दूसरे पर आशा लगाए बैठे रहे. मानवीय पुरुषार्थ कहता है ऐसा नहीं होना चाहिए।


भटकना मत 


लोभौं के झोंके, मोह के झोंके, नामवरी के झोंके, यश के झोंके, दबाव के झोंके ऐसे हैं कि आदमी को लंबी राह पर चलने के लिए मजबूर कर देते हैं और कहां से कहां घसीट ले जाते हैं. हमको हमको भी घसीट ले गए होते. ये सामान्य आदमियों को घसीट ले जाते हैं। बहुत से व्यक्तियों में जो सिद्धांतवाद की राह पर चलें, इन्हीं के कारण भटक कर कहां से कहां जा पहुंचे. 


आप भटकना मत, आपको जब कभी भटकन आए तो आप अपने उस दिन की उस समय की मन स्थिति को याद कर लेना जब आपके भीतर से श्रद्धा का एक अंकुर उगा था. उसी बात को याद रखना कि परिश्रम करने के प्रति जो हमारी उमंग और तरंग होनी चाहिए उसमें कमी तो नहीं आ रही।


लगन और श्रम का महत्व


लग्न आदमी के अंदर हो तो 100 गुना काम करा लेती है। इतना काम करा लेती है कि हमारे काम को देख कर आपको आश्चर्य होगा। इतना साहित्य लिखने से लेकर इतना बड़ा संगठन खड़ा करने तक और इतनी बड़ी क्रांति से लेकर के इतने आश्रम बनाने तक जो काम शुरू किए वह कैसे हो गए? यह लगन और श्रम है. 


यदि हमने श्रम से जी चुराया होता तो उसी तरीके से घटिया आदमी होकर के रह जाते जैसे कि अपना पेट पालना ही जिनके लिए मुश्किल हो जाता है। चोरी से ठगी से चालाकी से जहां कहीं भी मिलता पेट भरने के लिए कपड़े पहन ने के लिए और अपना मौज शौक पूरा करने के लिए पैसा इकट्ठा करते रहते पर हमारा यह बड़ा काम संभव ना हो पाता।


चिंतन और चरित्र का समन्वय 


अपने दोष दूसरों पर थोपने से कुछ काम न चलेगा। हमारी शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलताओं के लिए दूसरे उत्तरदाई नहीं वरन हम स्वयं ही हैं। दूसरे व्यक्तियों, परिस्थितियों एवं Destiny भोगों का भी प्रभाव होता है। पर तीन चौथाई जीवन तो हमारे आज के दृष्टिकोण एवं कर्तव्य का ही प्रतिफल होता है। अपने को सुधारने का काम हाथ में लेकर हम अपनी शारीरिक और मानसिक परेशानियों को आसानी से हल कर सकते हैं। प्रभाव उनका नहीं पड़ता जो बकवास तो बहुत करते हैं पर स्वयं उस ढांचे में ढलते नहीं.  जिन्होंने चिंतन और चरित्र का समन्वय अपने जीवन काल में किया है, उनकी सेवा साधना सदा फलती फूलती रहती है।


आत्मशक्ति पर विश्वास रखो


क्या करें, परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं है, कोई हमारी सहायता नहीं करता, कोई मौका नहीं मिलता आदि शिकायतें निरर्थक है। अपने दोस्तों को दूसरों पर थोपने के लिए इस प्रकार की बातें अपने दिल जमाई के लिए कही जाती है। लोग कभी Destiny को मानते हैं, कभी देवी-देवताओं के सामने नाक रगडते हैं। इस सब का कारण है अपने ऊपर विश्वास का ना होना। 


दूसरों को सुख देखकर हम परमात्मा के न्याय पर उंगली उठाने लगते हैं। पर यह नहीं देखते कि जिस परिश्रम इन सुखी लोगों ने अपने काम पुरे किए हैं, क्या वह हमारे अंदर है। ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता उसने वह आत्मशक्ति सब को मुक्त हाथों से प्रदान की है जिसके आधार पर उन्नति की जा सकती है।


आत्मविश्वास जागृत करो 


जब निराशा और असफलता को अपने चारों और मंडराते देखो तो समझो कि तुम्हारा चित् स्थिर नहीं, तुम अपने ऊपर विश्वास नहीं करते. वर्तमान दशा से छुटकारा नहीं हो सकता जब तक कि अपने पुराने सड़े गले विचारों को बदल ना डालो। जब तक यह विश्वास ना हो जाए कि तुम अपने अनुकूल चाहे जैसी अवस्था निर्माण कर सकते हो तब तक तुम्हारे पैर उन्नति की ओर बढ़ नहीं सकते। 


अगर आगे भी ना संभालोगे तो क्या हो सकता है दिव्य तेजी किसी दिन बिल्कुल ही क्षीण हो जाती है। यदि तुम अपनी वर्तमान अप्रिय अवस्था से छुटकारा पाना चाहते हो तो अपनी मानसिक दुर्बलता को दूर भगाओ। अपने अंदर आत्मविश्वास जागृत करो।


आप अपने मित्र भी हो और शत्रु भी


इस बात का शौक मत करो कि मुझे बार-बार असफल होना पड़ता है। परवाह मत करो क्योंकि समय अनंत है। बार-बार प्रयत्न करो और आगे की ओर कदम बढ़ाओ। निरंतर कर्तव्य करते रहो आज नहीं तो कल तुम सफल होकर रहोगे। 


सहायता के लिए दूसरों के सामने मत गिड़गिड़ाओ क्योंकि यथार्थ में भी इतनी शक्ति नहीं है जो तुम्हारी सहायता कर सके किसी कष्ट के लिए दूसरों पर दोषारोपण मत करो क्योंकि यथार्थ में कोई भी तुम्हें दुख नहीं पहुंचा सकता. तुम स्वयं ही अपने मित्र हो और स्वयं ही अपने शत्रु हो. जो कुछ भली बुरी स्थिति सामने है वह तुम्हारी ही पैदा की हुई है. अपना दृष्टिकोण बदल दोगे तो दूसरे ही क्षण भय के भूत अंतरिक्ष में तिरोहित हो जाएंगे।


खिलाड़ी भावना अपनाओ


आप के विषय में आपकी योजनाओं के विषय में आप के उद्देश्यों के विषय में अन्य लोग जो कुछ विचार करते हैं उस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। अगर वह आपकी कल्पनाओं के पीछे दौड़ने वाले उन्मुक्त अवस्था स्वप्न देखने वाले कहे तो उसकी प्रवाह मत करो। 


तुम अपने व्यक्तित्व पर श्रद्धा को बनाए रखो। किसी मनुष्य के कहने से किसी आपत्ती के आने से अपने आत्मविश्वास को डगमगाने मत दो. आत्मश्रद्धा को कायम रखोगे और आगे बढ़ते रहोगे तो जल्दी या देर से संसार आपको रास्ता देगा ही। आगे भी प्रगति के प्रयास तो जारी रखें ही जाएं पर वह सब खिलाड़ी भावना से ही किया जाए।


संतोष भरा जीवन जिएंगे


समझदारी और विचारशीलता का तकाजा है कि संसार चक्र के बदलते कर्म के अनुरूप अपनी मन स्थिति को तैयार रखी जाए। लाभ, सुख, सफलता, प्रगति, वैभव, आदि मिलने पर अहंकार से ऐठन की जरूरत नहीं। कहा नहीं जा सकता कि वह स्थिति कब तक रहेगी। ऐसी दशा में रोने खींचने, खींचने, निराश होने में शक्ति नष्ट करना व्यर्थ है। 


परिवर्तन के अनुरूप अपने को ढालने में विपन्नता को सुधारने में सोचने हल निकालने और तालमेल बिठाने में मस्तिष्क को लगाए जाए तो यह प्रयत्न  रोने और सिर घुलने की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ कर होगी। बुद्धिमानी इसी में है कि जो उपलब्ध है उसका आनंद लिया जाए और संतोष भरा  संतुलन बनाए रखा जाए।


विचार और कार्य संतुलित करो


एक साथ बहुत सारे काम निपटाने के चक्कर में मानयोग से कोई कार्य पूरा नहीं हो पाता। आधा अधूरा कार्य छोड़ कर मन दूसरे कार्य की ओर दौड़ने लगता है। यही से श्रम, समय की बर्बादी प्रारंभ होती है तथा मन में खींच उत्पन्न होती है। विचार और कार्य समति एवं संतुलित कर लेने से श्रम और शक्ति का अपव्यय रुक जाता है और व्यक्ति सफलता के Step ऊपर चढ़ता चला जाता है। 


कोई भी काम करते समय अपने मन को उच्च भावों से और संस्कारों से ओतप्रोत रखना ही सांसारिक जीवन में सफलता का मूल मंत्र है। हम जहां रहे हैं उसे नहीं बदल सकते पर अपने आप को बदल कर हर स्थिति में आनंद ले सकते हैं।


दूसरों पर आश्रित ना हो


दूसरों से यह अपेक्षा करना कि सभी हमारे होंगे और हमारे कहे अनुसार चलेंगे, मानसिक तनाव बने रहने का, निरंतर उलझनों में फंसे रहने का मुख्य कारण है। इससे छुटकारा पाने के लिए यह आवश्यक है कि हम चुपचाप शांति पूर्वक अपना काम करते चले और लोगों को अपने हिसाब से चलने दें। किसी व्यक्ति पर हावी होने की कोशिश ना करें और ना ही हर किसी को खुश करने के चक्कर में अपने अमूल्य समय और शक्ति को अपव्यय करें।


धर्म का सार तत्व


अस्त व्यस्त जीवन जीना, जल्दबाजी करना, रात में व्यस्त रहना, हर पल क्षण को काम-काम में ही घुसते रहना भी मन क्षेत्र में भारी तनाव पैदा करता है। अतः यहां यह आवश्यक हो जाता है कि अपनी जीवन विधि को, दैनिक जीवन को विवेकपूर्ण बनाकर चलें। इमानदारी, संयमशीलता, सज्जनता, नियमितता, सुव्यवस्था से भरा पूरा हल्का फुल्का जीवन जीने से ही मन: क्षेत्र का सदुपयोग होता है और ईश्वर प्रदत्त क्षमता से समुचित लाभ उठा सकने का योग बनता है। कर्तव्य के पालन का आनंद लो तो और विघ्नों से बिना डरे जूझते रहो यही है धर्म का सार तत्व।


आत्मविश्वास और अविरल अध्यवसाय


संसार के सारे महापुरुष प्रारंभ में साधारण श्रेणी, योग्यता, क्षमताओं के व्यक्ति रहे हैं। इतना होने पर भी उन्होंने अपने प्रति दृष्टिकोण Approach हीन नहीं बनने दिया और निराशा को पास नहीं फटकने दिया। आत्मविश्वास (Self-Confidence)  एवं अविरल अध्यवसाय के बल पर वह कदम आगे बढ़ते ही गये। प्रतिकूल परिस्थितियों (Unfavorable Conditions) में भी वे लक्ष्य से विचलित नहीं हुए। नगण्य से साधन और अल्प योग्यता से होते हुए भी देश, धर्म, समाज और मानवता की सेवा में अपने जीवन की आहुति समर्पित कर समाज के सामने उदाहरण प्रस्तुत कर गए और कोटि-कोटि जनों को दिशा प्रदान कर गए। 



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