Short hindi stories: बच्चों की किसी ज़रूरत के आड़े कोई कमी न आए , इसका जीवन - भर ध्यान रखने वाले पिता को बुढ़ापे में एक छोटे - से संदेश का इंतज़ार है , जो जीवनयापन के लिए ज़रूरी है ।
लघुकथा- राजेंद्र ओझा
लघुकथा-अच्छे तो हो न बेटा | short Story : acche to ho na beta
' अच्छे तो हो न बेटा ! '
Short story : यूं वह जल्दी उठने के बाद भी रोज की तरह ' जल्दी क्या है ? ' जैसा कुछ दिख नहीं रहा था । वह तैयार भी जल्दी ही हो गया ।
अकेला था वह । उसने अख़बार उठाया । वह पढ़ कम और पलट ज्यादा रहा था । उसने घड़ी की तरफ देखा , ' ओह , अभी इतना ही समय हुआ है । ' उसने फिर अख़बार उठाया , ऐसा लगा कि इस बार वह अख़बार पढ़ रहा है । वह कुछ देर तक झुका रहा अखबार पर और घड़ी की टन - टन ने उसे जाग्रत कर दिया ।
वह कुर्सी पर बैठ चुका था और उसने अपना मोबाइल टेबल पर अपने ठीक सामने रख दिया था । आज उसे चाय की भी याद नहीं आई । उसने एकबार सोचा भी कि चाय चढ़ा दी जाए , लेकिन ... वह बैठा रहा । कोई और दिन होता तो अब तक तीन - चार बार तो हो ही चुकी होती चाय ।
इतने में उसे मैसेज ट्यून सुनाई दी । उसका चेहरा चमक उठा और उसने बहुत आहिस्ता से चश्मा चढ़ाया और मैसेज देखने के लिए मोबाइल ओपन किया ।
' अरे ! ' विस्मय ने उसे घेर लिया । उसने फिर मोबाइल देखा , चेहरे की चमक कुछ हल्की हो गई थी । यह वह मैसेज नहीं था , जिसका वह इंतजार कर रहा था । वह कुर्सी पर ही बैठा था , लेकिन अब आराम जैसी बात कुछ दूर चली गई थी ।
मोबाइल फिर बजा ।
इस बार चश्मा कुछ जल्दी में चढ़ाया और ... इस बार भी नहीं ! वह सोचने लगा , चेहरा कुछ और फीका हो गया था । इस बार उसने चश्मा उतारा नहीं , माथे पर फंसा दिया था ताकि मैसेज पढ़ने के लिए उसे जल्दी से लगाया जा सके । घड़ी अपना काम कर रही थी । चेहरे की चमक पूरी तरह उतर चुकी थी । कपाल पर बल पड़ने लगे थे ।
घड़ी लगभग उस जगह तक पहुंच गई थी , जिसके बाद ' मनी ट्रांसफर ' मैसेज की कोई गुंजाइश नहीं बची थी ।
उसने तत्क्षण चश्मा अपनी आंखों पर चढ़ाया और मैसेज सेन्ट किया -
' बेटे ठीक तो हो ? ' वह हमेशा बेटे के लिए चिंतित रहा है , आज भी है । उसे पता है - वह पिता है ।