लघुकथा: किसने तय किया ?
अंदर आइए तो 'किचन से सुधा ने आवाज लगाई!'
अब क्या हुआ? किसलिए बुला रही हो?'
'ये अलमारी खोल दीजिए ऊपर की।'
संतोष जी ने ऊपर की अलमारी खोली। उसमें कई सारे डब्बे क़रीने से जमे हुए थे! सबके ऊपर लेबल लगे हुए थे।
अब क्या करना है? 'उन्होंने पूछा!'
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ये देखिए इसमें बेसन है, इसमें चावल इसमें दलिया है! ये सारी दालें हैं, इसमें ये हैं इसमें वो!
ओफ्फो! ये तुमको क्या हो गया है आजकल। तुम रोज मुझे किचन में बुला रही हो और जिस तरह से यह सब दिखा रही हो, समझ नहीं आ रहा है। ये सब क्या है? मैं बच्चा नहीं हूं!
'लेकिन आपको यह जानना जरूरी है कि कहां पर क्या चीज़ रखी हुई है नहीं तो आप परेशान हो जाएंगे।'
'परेशान हो जाऊंगा मतलब?'
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'मतलब यह कि .. 'सुधा हंसती हुई बोली' पिछले एक सप्ताह से आप रोज अलमारी खोलकर एक-एक फ़ाइल निकालकर मुझे दिखाते और मुझे टेबल पर बिठाकर समझाते रहे हैं- ये देखो ये पेंशन के पेपर हैं, ये देखो ये एफ डी हैं, ये सारी पासबुक हैं, ये मेडिकल के पेपर हैं, यहां पर अपना खाता है, इस बैंक में लिविंग सार्टिफिकेट जमा होता है, यहां पर ये है, यहां पर वो है!
एक सप्ताह से आपका दिखाया समझ रही हूं। इसलिए आपको भी किचन का जानना उतना ही जरूरी है जितना मुझे आपकी फ़ाइलों को समझना।
कहकर सुधा जोर से हंस दी और बोली 'कहीं मैं पहले चली गई तो?
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