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अपमान करना याद है Hindi Short Stories

Short Moral Story in Hindi: किसी को ठीक से समझे बगैर उसका अपमान करना ऐसा कांटा है, जो जीवन- भर चुभता रहता है, ना उसे निकाला जा सकता है और ना ही उसका दर्द कम किया जा सकता है। वैसा ही सुख भलाई पाने में है। मुझे तो दोनों अहसास साथ मिले।

Apmaan karna yaad hai Short Moral hindi kahani

अपमान करना याद है Apmaan Karna Yaad Hai 

हिन्दी स्टोरी: बात उन दिनों की है, जब मैं इंजीनिरिंग कॉलेज बात में पढ़ता था। विश्वविद्यालय के नियम के अनुसार तृतीय व चतुर्थ वर्ष के बाद ग्रीष्म अवकाश में ट्रेनिंग लेना आवश्यक होता था। ये नियम अभी भी है, और यह विद्यार्थी के सार्वभौमिक विकास के लिए जरूरी है। 

मुझे ओबरा के ताप विद्युत ग्रह जो कि उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है, में यह प्रशिक्षण लेना था। उज्जैन से अपने महाविद्यालय के प्राचार्य से ओबरा ताप विद्युत ग्रह के अधिकारियों के लिए आवश्यक पत्र लेकर अपने गन्तव्य ओबरा के लिए रेलगाड़ी से चल दिया।

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ओबरा में उस समय मेरी बहन रहती थीं, इसलिए रहने और खाने-पीने की चिंता नहीं थी। पूरे समर्पण और मनोयोग के साथ अपने प्रशिक्षण को मैंने पूरा किया। शीघ्र ही एक माह समाप्त हो गया। मैंने प्रशिक्षण रिपोर्ट तैयार की, वहां के अधिकारी से प्रमाण पत्र लिया और वापसी यात्रा का कार्यक्रम बनाने लगा। इसी बीच ज्ञात हुआ कि ओबरा ताप विद्युत ग्रह का एक ट्रक खाली ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर कानपुर जा रहा है। 

विद्यार्थी जीवन में कुछ नया करने का उत्साह और कुछ मुद्रा की कमी के कारण मैं कानपुर के लिए अपना बैग लेकर ट्रक से चल दिया। यात्रा संध्या काल में प्रारम्भ हुई। मैं ड्राइवर के केबिन मैं बैठा आते-जाते दृश्यों व यातायात का आनन्द ले रहा था। 

जब रात गहरी हो गई, तो ड्राइवर ने एक पेट्रोल पम्प के किनारे ट्रक लगाया और मुझसे कहा,‘पीछे सिलेंडर जिन पर त्रिपाल पड़ा है, उन पर लेट कर आराम कर लो।'

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सिलेंडरों पर लेटना बड़ा कष्टकारक था, पर नींद के कारण लेटा और सोने का प्रयास किया। मन में क्षोभ होने लगा कि क्यों ट्रक से वापस अपने ग्रह नगर आने का निर्णय लिया। कुछ समय बाद प्रातःकालीन वायु का संचार होने लगा और ट्रक भी अपने गन्तव्य के लिए चल दिया। 

मार्ग में ट्रक चालक ने कुछ यात्रियों को भी ट्रक में बैठा लिया। उन यात्रियों में एक गेरूआ वस्त्र पहने साधु जैसा दिखने वाला व्यक्ति भी मेरे पास वाली जगह पर जहां मैं लेटा था, वहीं बैठा था। 

रात को नींद न होने के कारण और सिलेंडर पर रात बिताने के कारण मन बहुत खिन्न था। इसी बीच बार-बार मेरे ऊपर एक कपड़ा आकर गिरता था, जो मुझे बहुत असहज कर रहा था। आंखें खोलकर देखा तो वह कपड़ा साधु जैसे व्यक्ति का था और वो उस कपड़े को किसी चीज़ पर लपेटने का प्रयत्न कर रहा था। और इस कार्य के दौरान कपड़ा बार-बार मेरे ऊपर गिर रहा था। 

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मैंने क्रोधवश उस व्यक्ति को काफी अपशब्द बोले, पर वो मुस्कराता ही रहा और कपड़ा लपेटने का काम करता रहा। मैंने गौर से देखा कि वो एक छाते पर कपड़ा लपेटने में व्यस्त था। उम्र अधिक होने से उनको यह कार्य करने में समय और श्रम अधिक लग रहा था। मैंने क्रोधवश उस व्यक्ति को फिर गुस्से में काफी सुनाया। तब तक उस व्यक्ति का कार्य पूरा हो चुका था।

उन्होंने कहा कि वो समझ गए थे कि मुझे लेटने में बहुत असुविधा हो रही है, इसलिए वो छाते पर अपना उत्तरीय लपेटकर मेरे लिए तकिया तैयार कर रहे थे, ताकि मुझे कुछ आराम मिल सके। फिर उन्होंने वो कपड़े में लपेटा हुआ छाता मेरे सिर के नीचे रख दिया।

मैं अपने व्यवहार के कारण सकुचा गया। मैंने उनसे माफ़ी मांगते हुए कहा, 'मैंने आपको बहुत लापरवाह, दूसरों के कष्ट को ना समझने वाला व्यक्ति समझा और बार बार अपशब्द कहे, फिर भी आपने मेरे आराम के लिए तकिया बनाया। मैं अपनी सोच व ग़लत व्यवहार के लिए शर्मिंदा हूं।' 

आज 45 वर्ष बाद भी भलाई की अनूठी याद बनकर ये घटना मन मस्तिष्क पर अक्सर छा जाती है।

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