कहानी हिंदी में: विशाल मानव समुद्र में से हजारों हाथ उठे, मानो सभी संकल्प की आज्ञा मांग रहे हो। फिर संतश्री ने ऐसा संकल्प दिलवाया कि सब सन्न रह गए। अगले दिन पंडाल में सन्नाटा पसरा हुआ था ....
कहानी-मुकेश राठौर
'आखिरी संकल्प' कहानी हिंदी में | Aakhri Sankalp Hindi Kahani
नगर में पांच दिनी सत्संग का आयोजन किया जा रहा था। संतश्री भी काफी पहुंचे हुए थे। ज्ञानी और विद्वान भी। समूचे क्षेत्र में आस्था की बयार बह रही थी। सत्संग लाभ लेने की नेक नियत से लोगों ने समय पूर्व ही अपनी दुनियादारी और दुकानदारी के सारे काम निपटा लिए कि बस सत्संग शुरू हो और जाकर अपनी-अपनी जगह संभाल लें।
तय तिथि व समय पर सत्संग का शुभारंभ हुआ। गाजे-बाजे के साथ संतश्री गादी पर विराजमान हुए। सत्संग की शुरुआती बेला में ही ऐसी भीड़ कि आगे देखो तो नरमुंड ही नरमुंड दिखाई दें और आजू- बजू देखो तो कतारबद्ध खड़े दो पहिया, चार पहिया और ट्रैक्टर ट्राली जैसे छह पहिया वाहन। संतश्री के श्रीमुख से धर्म ग्रंथों के साथ लोकजीवन के विविध प्रसंग सुनाए जाने लगे। श्रोता बड़े चाव से सुन रहे थे। इस दौरान कथित आधुनिकता के नाम डैमेजधारी युवा पीढ़ी का प्रसंग आया तो सामने ही बैठे पाश्चात्य परिधानधारियों को देख संतश्री दुखी हो हुए। मोको कहां ढूंढे रे बंदे मैं, तो तेरे पास में ...!
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चूंकि सत्संगियों को हर दिन एक संकल्प दिलाना सत्संग की कार्ययोजना में शामिल था। सो पहले दिन की कथा के समापन पर संतश्री ने सभी को संकल्प दिलाया कि 'कल से सभी लोग पारंपरिक वेशभूषा में आएंगे। यथा पुरुष और बच्चे सफेद धोती या पायजामा-कुर्ता और महिलाएं पीली साड़ी पहनकर सत्संग में शामिल हो। '
सभी ने संकल्प लिया और अपने-अपने घरों को चल पड़े। संकल्प के परिपालन में लोगों ने निजधाम लौटना छोड़ नगर के वस्त्रालयों की ओर दौड़ लगाई। भाव देखा न मोल, जहां जैसे कपड़े मिले खरीद लिए। हुआ यह कि पारंपरिक परिधानों की मांग इस कदर बढ़ी कि नगर के बजाजों के लिए पूर्ति करना मुश्किल हो गया। कुछ ने रातोरात अन्य शहरों से वस्त्र मंगवाए तो कुछ ने सत्संग अवधि के लिए सगे संबंधियों से मांग कर व्यवस्था की।
दूसरे दिन पंडाल का परिदृश्य ही बदल गया था। कहां तो कल रंग-बिरंगे, पाश्चात्य वेशभूषाधारी नर-नारी और कहां आज तेरा, मेरा, सबका मनुआ मानो एक हो गया हो!
आज की ज्ञानगंगा में संतश्री के श्रीमुख अंतर से जो विचार बहकर आए, वह समाज में फैली निर्धनता को लेकर थे। उन्होंने बताया कि आज भी दूर गांव-देहातों में बच्चे फटेहाल मिल जाएंगे। ऐसी गरीबी कि मां-बाप अपना पेट काटकर भी बच्चों के पेट नहीं ढंक पा रहे हैं। बड़े भाग्यवान हैं वे लोग जिन्हें रोटी, कपड़ा और मकान मिला है। और सत्संग का सुअवसर भी।
सत्संगी भावुक हो गए। आज फिर एक संकल्प लेकर जाना था। संतश्री ने संकल्प दिलाया कि आज 'अपने अतिशेष और अनुपयोगी वस्त्र गरीब बस्तियों में दान करके आएंगे।' घर पहुंचकर सबने वैसा ही किया।
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तीसरे दिन सबके मुखमंडल पर संतोष का भाव था। संतश्री ने दूसरे संकल्प की प्रतिपुष्टि कर सत्संग प्रारंभ किया। वे भक्तों को समझा रहे थे कि किस तरह मनुष्य भौतिक सुख सुविधाओं के पीछे दौड़ रहा है। घरों में भोग विलास की सारी वस्तुएं तो उपलब्ध हैं, लेकिन सद्साहित्य ढूंढे से न मिलता है। सत्यवादी राजा हरिशचंद्र की कहानी पढ़कर बालक मोहनदास के मन में सत्य और ईमानदारी का बीजारोपण हुआ।
आज घरों में धर्म नहीं, ढोंग की चर्चा होती है। आज संकल्प लो कि घर जाते समय सद्साहित्य अपने साथ ले जाएंगे। गीता, रामायण, श्रीमद भागवत... जो सहज सुलभ हो जाए। सत्संगियों ने परिपालन में वैसा ही किया। नगर के पुस्तक भंडारों से सारी धार्मिक किताबें खरीद ली गईं। जिन्हें पुस्तकें न मिली, वे देवताओं के चित्रादि खरीदकर ले गए ताकि संतश्री के सामने हां वालों की टोली में हाथ उठा सकें।
चौथे दिन सत्संग शुरू हुआ। सत्संग का उत्तरार्ध अर्थात समापन से ठीक पहले का दिन। अंतिम दिवस तो वही होना था, जो प्रायः सत्संग, कथा-पुराणों में होता है यानी पूर्णाहुति, समर्पण, आभार और विदाई। सो आज संतश्री ने वेद, पुराणों के गूढ़ रहस्यों पर प्रवचन देना शुरू किया। आज भारी संख्या में श्रोता संतश्री को सुनने पहुंचे थे। दरअसल, हम सब आखिरी रोटी खाने वाले लोग हैं, सत्संग हो या कुछ भी, अंतिम घड़ियों में ही समय निकाल पाते हैं। संतश्री ने कहा कि हमें फेसबुक, व्हाट्सएप के पासवर्ड याद हैं, मगर रिश्तों के पासवर्ड नहीं।
मन की गांठों का क्या होगा ? जब पासवर्ड ही याद नहीं होंगे तो प्रोफाइल कैसे खुलेंगी ? आभासी दुनिया से बाहर आइए और असल दुनिया में जीना सीखिए । आप सभी ने जिस तरह बाकी संकल्प लिए बल्कि पूरे भी किए , उससे मुझे विश्वास है कि आज आखिरी संकल्प भी न सिर्फ आप लेकर जाएंगे , बल्कि पूरा भी करेंगे ।
विशाल मानव समुद्र में से हजारों हाथ उठे , मानो संकल्प की आज्ञा मांग रहे हो । संतश्री ने कहा- तो आज यह संकल्प लीजिए कि जिन बेटों के माता - पिता या यूं कहे कि बहुओं के सास - ससुर घर के ही किसी कोने - कुचैले में या बाहर कहीं कमरे में या फिर वृद्धाआश्रमों में रह रहे हैं , उन्हें ससम्मान घर ले जाएंगे और अपने साथ रखेंगे । कल आप अपने जोड़े से नहीं , बल्कि उस जोड़े के साथ आएंगे जिन्होंने तुम्हें इस दुनिया से जोड़ा । मुझे विश्वास है कल अपेक्षाकृत अधिक भीड़ रहेगी । पांचवें दिन पंडाल में लगभग सन्ना टा पसरा हुआ.
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