मुझे जीना है: Short Story in Hindi
मुझे जीना है: बच्चे अपनी जिंदगी में मशगूल हो जाते हैं और माता-पिता उनकी राह तकते रहते हैं। क्यों ऐसा नहीं हो सकता कि माता-पिता बच्चों की परवाह के साथ, उनके इंतज़ार की इच्छा को संजोते हुए भी, अपनी जिंदगी में मशगूल हो जाएं ?
छोटी कहानी: पुष्पा भाटिया
मुझे जीना है: Short Story in Hindi
अंशु और बच्चों को स्टेशन विदा करके, राज के साथ, शिथिल पैरों को घसीटती हुई अपने घर पहुंची, ताला खोला तो सब वीरान था। ना बच्चों के कहकहे, ना अंशु की हिदायतें, ना चौके से आती पकवानों की ख़ुशबू, ना हम मां-बेटी की बातों का शोर, बस हर तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा और मन में फिर ख़ालीपन।
रामदीन और हरिया काम निपटाते हुए मिनी और कमल की शैतानियों को याद करते जा रहे थे। बीच- बीच में राज भी उन दोनों की शैतानियों को याद करके कुछ-कुछ बातें कह जाते थे, पर मेरा मन, एक के बाद दूसरी, दूसरी के साथ तीसरी अनगिनत स्मृतियां लपेटने को आतुर था।
अंशु के आने की ख़बर मिलते ही मन पुलक़ से भर उठा था। दिमाग में कई योजनाएं बनने बिगड़ने लगी थीं। पिछली बार जब अंशु आई थी, तब दो सप्ताह पहले से ही मैंने उसकी पसंद के अचार डालने शुरू कर दिए थे। इस बार मै पांच किलो आम ख़रीद लाई थी। सोचा मुरब्बा और चटनी भी बना दूंगी। उसकी ससुराल वाले ख़ुश हो जाएंगे और मेरी ख़ुशी भी दोहरी हो जाएगी।
थोड़ी मदद रामकली और हरिया से भी ले लो ' मुझे दौड़-भाग करते देख राज ने मशविरा दिया
इनकी आंखों और हमारी आंखों में बहुत अंतर है। ये लोग उस तरह काम कर ही नहीं सकते, जिस तरह मै करती हूं
' तुम्हारी तबियत न बिगड़ जाए ..
‘ कुछ नहीं होगा ... आप निश्चिन्त रहिए ।'
अंशु और बच्चों के कपड़े और खिलौने रखने के लिए मैंने अपनी अलमारी ख़ाली कर दी। एक नया एल ई डी ऑनलाइन मंगवा कर दीवार पर टंगवा दिया, जिससे बच्चे अपने मनपसंद प्रोग्राम देख सकें । कितनी रौनक आ गई थी घर में ऐसा लगा जैसे मेरी जवानी की सारी खुशियां वापस लौट आई हों। सारी छोटी-मोटी बीमारियां न जाने कहां भाग गईं ।
नटखट, गोरी-गोर, घुंघराले बालों वाली मिनी, सारा दिन मेरी साड़ी पकड़-पकड़ कर नानी नूडल्स बनाओ, नानी केक बनाओ ' की फ़रमाइशें करती रहती ।
पहुंचते ही उसने अपनी आंखें मटकाते हुए राज के सामने एक बड़ी-सी राजस्थानी ड्रेस वाली गुड़िया की फ़रमाइश रख दी थी और राज ने भी तुरंत ड्राइवर को बुलाकर शाम को ही उसे वैसी गुड़िया दिलवा दी थी ।
कूदती-फांदती मिनी घर में जो भी आता, उससे पहला वाक्य यही बोलती 'आज नाना ने मुझे गुड़िया लेकर दी है। ' कमल थोड़ा गंभीर क़िस्म का है ।
बड़ा है शायद इसीलिए किसी चीज की फरमाइश नहीं करता था। हमेशा नाना का मूड और नाना की जेब देखकर ही मांग रखता था, उसकी ज्यादातर चीजें पढ़ाई-लिखाई से संबंधित होती थीं या कॉमिक्स
शाम तक थकावट की वजह से बच्चे जल्दी सो गए, हम लोगों को भी जल्दी नींद आ गई थी। जब मन में सुकून होता है तो शरीर में भी किसी तरह की परेशानी नहीं होती।
एक सप्ताह अप्पूघर, चिल्ड्रन पार्क फ़न एंड फ़ूड चिल्ड्रन पार्क, घूमने में कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। एक दिन मिनी ने ऊधम मचाना शुरू कर दिया, आज तो हम मॉल जाएंगे, जैसे उसमें घूमने की चाभी भर गई हो ।
अंशु ने उसको डांट दिया,' कोई कहीं नहीं जाएगा। ये रोज- रोज घूमना ठीक नहीं है। आज मुझे शॉपिंग के लिए निकलना है। '
'क्यों डांट रही है बच्ची को ? अपने नाना- नानी के घर आई है , यहां उसे हर बात की छूट है, न पढ़ाई का डर न होमवर्क की चिंता ।
अंशु तो चुप हो गई लेकिन मिनी बुरा सा मुंह बना कर बैठ गई ।
'अच्छा चलो, हम लोग जू चलते हैं। मम्मा शॉपिंग के लिए चली जाएंगी ' मैंने उसे मनाने की कोशिश करते हुए कहा। ' नहीं मुझे कहीं नहीं जाना ।'
'छोड़ दीजिए मम्मा,आपके लाड़ प्यार से ज्यादा ही सिर चढ़ गई है ।
'मिनी और कमल अपने नाना के साथ कैरम खेलते रहे, अंशु मार्केट चली गई। मैं उसकी विदाई की तैयारियां करने लगी।
वापस लौटी तो अपने सामान के साथ वो मेरे लिए किचन के नए डिब्बे, पायदान, तौलिए, चादरें भी ख़रीदकर ले आई थी। उसका कहना था कि नई चीजों के साथ रहने से दिल भी जवान रहता है।
‘अंशु,क्या दामाद जी को दिल्ली में जॉब नहीं मिल सकती ' कहते हुए मेरी आंखें नम हो आई थीं । '
मम्मा, समीर का पूरा कैरियर बिगड़ जाएगा ...
'मुझे धक्का लगा .. धीरे से बोली ' बुढ़ापे में बच्चे पास रहें तो सहारा सा मिलता है। वो जमाना चला गया मम्मा। आजकल तो लोग बच्चों के साथ से ज्यादा ओल्डएज होम में ख़ुश रहते हैं। कंपनी और सुरक्षा दोनों ही मिलती है। मेरे ससुर ने फरीदाबाद ओल्डएज होम में एक रूम सेट बुक करवा लिया है ।
आप लोग भी बुक कर लीजिए,आजकल डिस्काउंट चल रहा है। बच्चे अपना सामान समेट रहे थे। खिलौने, कॉमिक्स ... और अंशु अपनी मेड को फ़ोन घुमा रही थी। बीस दिन से बंद पड़े घर को पुनः व्यवस्थित करने की चिंता उसे सता रही थी। एक सर्द आह के साथ मुंह से निकला माता पिता सबके हैं लेकिन उनका कोई नहीं
ग़लत। ' मेरे अस्फुट स्वर न जाने कैसे राज के कर्ण कुहरों तक पहुंच गए थे ,' बच्चे अपनी जिंदगी जी रहे हैं , हमें अपनी जीनी है। ' विश्वास के साथ हौसला जाग उठा।
और मैं पुनः आने वाले कल की तैयारियों में जुट गई।
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