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कहानी विश्वास की जीत | Vishwas ki Jeet Hindi Story

Vishwas ki Jeet Hindi Story: आस जीवन का दूसरा नाम है इसे बनाए रखने का प्रयास नेकी की ही एक और शक्ल है।आस-निरास की लहरों पर डूबते इतराती एक भाव भरी

Vishwas ki Jeet Hindi Story: आस जीवन का दूसरा नाम है इसे बनाए रखने का प्रयास नेकी की ही एक और शक्ल  है।आस-निरास की लहरों पर डूबते इतराती एक भाव भरी कहानी विश्वास की जीत.

कहानी विश्वास की जीत | Vishwas ki jeet hindi story

 कहानी विश्वास की जीत | Vishwas ki jeet hindi story

वेरे से ही धनिया मेरे पास बैठी थी । अपने नियत समय से एक घंटे पहले ही आ गई थी । उसे पूरा भरोसा था , आज दिवाली के दिन उसका लड़का उसे फ़ोन ज़रूर करेगा । 

जैसे ही मेरे मोबाइल की घंटी बजती धनिया को लगता था कि उसी के लड़के का फोन है । जैसे ही मैं मोबाइल उठा कर ' हैलो ' बोलती , उसकी आंखों में एक चमक आ जाती । वो बड़े उत्साह से मेरी कुर्सी के और पास आ जाती थी । पर मेरे किसी मित्र या रिश्तेदार की तरफ से फोन पर मिलने वाली बधाई का अनुमान लगाकर वो थोड़ा निराश हो जाती थी , फिर वापस अपनी जगह पर निढाल होकर बैठ जाती थी । 

और कितनी देर बैठी रहोगी धनिया ? उसने कहा था सुबह 9 बजे फ़ोन करेगा । अब तो ग्यारह बज चुके हैं । अपने घर जाओ । दिवाली की तैयारी करो । ' मैं कुर्सी से उठी , रंग उठाए और रंगोली बनाना शुरू कर दी । 

धनिया की आंखों में उदासी के हल्के से भाव आए । फिर जल्दी ही वो संभलते हुए बोली- लाइए , ये वाला रंग हम भर देते हैं । जब तक रंगोली पूरी नहीं होती , हम आपके साथ रंग भरते रहेंगे ।

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धनिया की आस टूट जाए , मैं भी नहीं चाहती थी । मैंने मुस्कराकर उसे अनुमति दे दी । धनिया का लड़का दिल्ली चला गया था । फिर कभी वापस आया ही नहीं । यहां धनिया अपनी मडैया में अकेले रहती थी । उसके दो बच्चे और थे । एक लड़की जिसकी शादी हो चुकी थी । और एक छोटा लड़का जो कई बरस हुए पीलिया , निमोनिया झेल न पाया , और भगवान को प्यारा हो गया । अब बड़ा लड़का ही उसके जीने की अंतिम आस थी । 

धनिया की आंखों में मोतियाबिंद हो गया था । उसे अपनी आंख का ऑपरेशन कराना था । उसे लगता था उसका बड़ा लड़का खूब पैसे कमाकर वापस आएगा और उसका इलाज कराएगा । एक साल पहले जब धनिया का लड़का दिल्ली जा रहा था तो उससे चिपट कर खूब रोया था । उसने वादा किया था कि जल्दी ही वो धनिया की आंखों का ऑपरेशन करवा देगा । 

धनिया के रिश्ते के एक चाचा किसी काम से दिल्ली गए थे वहां उनकी मुलाकात उसके लड़के से हुई । उन्होंने धनिया का पूरा हाल उसे बताया कि किस प्रकार उसकी मां उसकी याद में बावली हो गई है । आंखों से दिखना बहुत कम हो गया है और समझाया कि थोड़ा खैर - खबर लेते रहा करो ।

 लड़के ने व्यस्तता का बहाना बताया । चाचा ने उसका मोबाइल नंबर ले लिया । वापस आकर उसने धनिया को बताया कि उसके लड़के ने दिल्ली में किसी फैक्ट्री में गार्ड की नौकरी ली है और वहीं उसने शादी करके अपनी गृहस्थी बसा ली है ।

 धनिया को तनिक भी विश्वास न हुआ । उसे लगा कि ये चाचा उसके परिवार से जलता है , इसीलिए अनाप - शनाप बक रहा है । उसे लगता था उसका लड़का उससे पूछे बिना पसंद के कपड़े तक नहीं पहनता था फिर शादी क्या करेगा । उसे क्या पता था कि दिल्ली जैसे बड़े शहर कितने भी सगे रिश्ते हों सबको पराया कर देते हैं ।

चाचा ने धनिया के बेटे का जो फोन नंबर लाकर दिया था , धनिया ने जब उस पर कल मुझसे फोन मिलवाया तो किसी औरत ने फ़ोन उठाया और कहा- ' हम उनकी पत्नी बोल रहे हैं , वो तो है नहीं घर पर । 

धनिया को एक धक्का सा लगा , मतलब शादी वाली बात सच थी । फिर उसने कहा- ' हम उनकी अम्मा बोल रहे हैं । उनसे बात करनी थी । ' 

तो उधर से औरत ने कहा , ' मां जी प्रणाम .. अच्छा , ठीक है ... कल सुबह नौ बजे बात कराते हैं आपकी ।' बस आज सुबह सात बजे से धनिया मेरे साथ लगी है । अब तो बारह भी बज गए , रंगोली भी पूरी हो गई पर उसका फोन न आया । 

भाभी न हो तो एक बार आप ही मिला लो , क्या पता भूल गया हो । या हो सकता है दिवाली की तैयारी में लगा हो । ' धनिया ने कहा । 

मैंने उसका मन रखने के लिए फोन मिला दिया । 

हैलो .. सुखवान , धनिया ... तुमसे बात करना चाहती है । ' जब मैंने उधर से किसी आदमी की आवाज सुनी तो उसे धनिया का लड़का समझा । 

यहां कोई सुखवान नहीं रहता । प्लीज इस नंबर पर फ़ोन मत मिलाइएगा कभी । ' उधर से उत्तर आया , इसके बाद फ़ोन कट गया । मेरी अंदर की आवाज पहले ही कह रही थी कि अब यहां कनेक्शन नहीं मिलने वाला । लेकिन कनेक्शन इतनी जल्दी कट जाएगा ... ये पता न था । 

मैंने धनिया की तरफ़ देखा जो आंखों में आस भरे मेरी ओर एकटक ताक रही थी । मैंने क्षण भर को उसकी आंखों में देखा फिर आगे उससे नज़रें मिलाने का मुझे साहस न हुआ । 

क्या हुआ भाभी ? ' उसने बड़ी आस से पूछा ।

कुछ नहीं धनिया । लगता है फोन ठीक से काम नहीं कर रहा । उधर से आवाज नहीं आ रही है । ' मैंने बहुत धीमे से कहा । ' अच्छा ' .. धनिया को जैसे मेरी बात का भरोसा नहीं हुआ । 

अच्छा भाभी ... कल फिर देख लेंगे । ' इतना कहकर वो हताश होकर जाने लगी । मैं जानती थी कल भी फ़ोन नहीं आएगा ।... 

यहां कोई सुखवान नहीं रहता ... '

इतनी तल्खी से ये कहा गया था कि मुझे भी पूरा विश्वास हो गया कि मोबाइल फोन के उस ओर जो भी हो , धनिया का लड़का तो नहीं ही हो सकता । एक पति हो सकता है , पैसे के पीछे भागने वाला आदमी हो सकता है , शहर में बसने वाला एक स्वार्थी , मक्कार इंसान हो सकता है , पर बेटा तो बिल्कुल भी नहीं । 

मैंने कुछ सोचकर अलमारी से दस हजार रुपए निकाले । तब तक धनिया गेट तक पहुंच गई थी ।

धनिया ओ धनिया .... ' मैंने उसे पीछे से आवाज़ दी । 

हां , भाभी ... ' धनिया फुर्ती से मेरी ओर मुड़ी । उसकी आंखें एक बार फिर चमकीं । उसे लगा शायद उसके लड़के का फोन आ गया ।

तुम्हारे लड़के का फ़ोन नहीं लग रहा था । , उतका मैसेज आया है । कह रहा है ' मेमसाब , मेरी मां को दस हजार रुपये दे दीजिए । जब मैं आऊंगा , तब दे दूंगा । ये लो..पैसे । अपने मोतियाबिंद का इलाज करा लेना । ' मैंने कहा । 

धनिया की आंखों से आंसू ढुलक गए । उसके विश्वास की जीत हो चुकी थी । उसने आगे बढ़कर मेरे हाथ से पैसे ले लिए और कहा , ' हम जानते थे , हमारा लड़का हमको बिसरा नहीं सकता । ' 

मैंने गहरी सांस ली और सोचा , ' आंखों का मोतियाबिंद तो ठीक हो सकता है । पर मन की आंखों को सब स्पष्ट न दिखे , वही ठीक है । '

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