Short Hindi Story- हर दिन अपने लिए एक खास आश्वस्ति की दरकार होती है। अहसास तो हो कि आपकी किसी को जरूरत है, क़द्र है! बुजुर्ग के मन में झांकती एक लघुकथा
लघुकथा: क़द्र एक छोटी कहानी
प्रतिदिन की भांति दौड़-भाग वाली दिनचर्या से थक कर, निढाल होकर रात को बिस्तर ने कब गहरी नींद के आगोश में जकड़ लिया, पता ही नहीं चला। सुबह कुछ आहट होने पर नींद खुली तो आंखों को मिचमिचाते हुए आसपास देखा और पाया कि दरवाजे पर खड़ा मेरा प्यारा पालतू बिल्ला बड़ी बेचैनी, से मुझे टुकुर-टुकुर निहार रहा था।
मेरे उठने का वो कितनी बेसब्री से इंतजार कर रहा था, इसी से समझ में आ गया कि मुझे उठा हुआ देख, वो मेरे करीब आया और पैरों पर लोट लगाकर ख़ुशी जाहिर करने लगा।
मेरे विरोध न करने पर प्रसन्नता से कूद कर गोद में आकर म्यूं-म्यूं करके मुझसे अपना स्नेह, लाड़, प्यार जताने लगा। मैंने भी उसे बड़े स्नेह से पुचकारा। उसके इस अप्रत्याशित व्यवहार ने मेरी नींद उड़ा दी, हर्ष और ख़ुशी से निहाल प्रातःकाल इस प्रकार के व्यवहार की सुखद अनुभूति और अहसास ने मुझे जैसे नया जीवन ही दे दिया। महसूस हुआ कि किसी को मेरी परवाह है। एक अच्छे प्रफुल्लित दिन की शुरुआत हुई, पूरा दिन आनंदमय रहा।
65-70 वर्ष की उम्र की ढलान पर उदास जिंदगी घिसटती-सिसकती गुजरती है। इंसान लगभग अपनी पूरी जिम्मेदारियों को निभा चुका होता है और निष्काम, उद्देश्यविहीन जीवन जीता है। महत्वाकांक्षा, अभिलाषा और इच्छाओं का दमन कर समझौतावादी नजरिए से समय गुजारता है। इस उम्र के लोगों से अक्सर सभी दूरियां बनाए रखते हैं, अपने भी पराए हो जाते हैं।
बिल्ले के व्यवहार ने याद दिलाया कि उम्र के हर दौर में सुबह का यह मंजर रिश्तों की डोर से बंधा मिलता है। बचपन में मां फिर भाई-बहनों, जीवनसंगिनी और फिर बच्चे-सबको घर के बड़े के जागने की प्रतीक्षा होती है।
किन्तु वृद्धावस्था आते-आते तक हमें यह स्नेह, लाड़, दुलार, प्यार देना पड़ता है अपने बच्चों को, अपने छोटे भाई-बहनों को, अपने बच्चों के बच्चों को। कोई आपके पास नहीं आता, आपको जाना पड़ता है। वृद्धावस्था में आपको सभी दरकिनार कर, मुंह मोड़ लेते हैं। इसी से घर के बाहर चले जाने या यात्रा आदि का ख़्याल आता है।
इस एकाकी जीवन के तनाव को कम कर दिया आज बिल्ले ने। अहसास करा दिया कि किसी को मेरे जागने की प्रतीक्षा है, क़द्र है, परवाह है। बेजुबान ने बता दिया कि घर की हर शै को अपने हिस्से की फिक्र, अपने हिस्से की परवाह मिले, तो उसका वजूद इत्मीनान से भर उठता है।
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