लघुकथा-क़द्र- हर दिन अपने लिए एक खास आश्वस्ति की दरकार होती है । अहसास तो हो कि आपकी किसी को जरूरत है , क़द्र है ! बुजुर्ग के मन में झांकती एक लघुकथा ।
लघुकथा-विलास कुमार नीले
लघुकथा-क़द्र
प्रतिदिन की भांति दौड़ - भाग वाली दिनचर्या से थक कर , निढाल होकर रात को बिस्तर ने कब गहरी नींद के आगोश में जकड़ लिया , पता ही नहीं चला ।
सुबह कुछ आहट होने पर नींद खुली तो आंखों को मिचमिचाते हुए आसपास देखा और पाया कि दरवाजे पर खड़ा मेरा प्यारा पालतू बिल्ला बड़ी बेचैनी , से मुझे टुकुर - टुकुर निहार रहा था । मेरे उठने का वो कितनी बेसब्री से इंतजार कर रहा था , इसी से समझ में आ गया कि मुझे उठा हुआ देख , वो मेरे करीब आया और पैरों पर लोट लगाकर ख़ुशी जाहिर करने लगा ।
मेरे विरोध न करने पर प्रसन्नता से कूद कर गोद में आकर म्यूं - म्यूं करके मुझसे अपना स्नेह , लाड़ , प्यार जताने लगा । मैंने भी उसे बड़े स्नेह से पुचकारा । उसके इस अप्रत्याशित व्यवहार ने मेरी नींद उड़ा दी , हर्ष और ख़ुशी से निहाल प्रातःकाल इस प्रकार के व्यवहार की सुखद अनुभूति और अहसास ने मुझे जैसे नया जीवन ही दे दिया । महसूस हुआ कि किसी को मेरी परवाह है । एक अच्छे प्रफुल्लित दिन की शुरुआत हुई , पूरा दिन आनंदमय रहा ।
65-70 वर्ष की उम्र की ढलान पर उदास जिंदगी घिसटती - सिसकती गुजरती है । इंसान लगभग अपनी पूरी जिम्मेदारियों को निभा चुका होता है और निष्काम , उद्देश्यविहीन जीवन जीता है । महत्वाकांक्षा , अभिलाषा और इच्छाओं का दमन कर समझौतावादी नजरिए से समय गुजारता है । इस उम्र के लोगों से अक्सर सभी दूरियां बनाए रखते हैं , अपने भी पराए हो जाते हैं ।
बिल्ले के व्यवहार ने याद दिलाया कि उम्र के हर दौर में सुबह का यह मंजर रिश्तों की डोर से बंधा मिलता है । बचपन में मां फिर भाई - बहनों , जीवनसंगिनी और फिर बच्चे- सबको घर के बड़े के जागने की प्रतीक्षा होती है । '
किन्तु वृद्धावस्था आते - आते तक हमें यह स्नेह , लाड़ , दुलार , प्यार देना पड़ता है अपने बच्चों को , अपने छोटे भाई - बहनों को , अपने बच्चों के बच्चों को । कोई आपके पास नहीं आता , आपको जाना पड़ता है । वृद्धावस्था में आपको सभी दरकिनार कर , मुंह मोड़ लेते हैं । इसी से घर के बाहर चले जाने या यात्रा आदि का ख़्याल आता है ।
इस एकाकी जीवन के तनाव को कम कर दिया आज बिल्ले ने । अहसास करा दिया कि किसी को मेरे जागने की प्रतीक्षा है , क़द्र है , परवाह है ।
बेजुबान ने बता दिया कि घर की हर शै को अपने हिस्से की फिक्र , अपने हिस्से की परवाह मिले , तो उसका वजूद इत्मीनान से भर उठता है ।