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कहानी अकेलेपन का खिलौना | kahani akelepan ka khilauna

कहानी अकेलेपन का खिलौना | Kahani Akelepan Ka Khilauna


कहानी: डॉ. यश गोयल वरिष्ठ लेखक एवं कथाकार


कहानी अकेलेपन का खिलौना |  kahani akelepan ka khilauna


रावण दहन के मेले में कभी-कभार कुबेर के पिताजी उसे गैस वाला गुब्बारा दिला देते थे। बहुत संभालकर वह सायकिल पर आगे डंडे पर सिकुड़कर बैठता था। पिताजी सायकिल बहुत ध्यान से चलाते थे। अम्मा कैरियर पर बैठ जाती थी। एक हाथ से छोटू को गोदी में पकड़ना और दूसरे हाथ से गुब्बारे की डोर को अपनी चूड़ियों में बांधकर घर तक लाना बहुत मुश्किल होता था। घर पहुंच कर गुब्बारा हाथ से छूटते ही छत से जा चिपकता था। डोरी से पकड़ कर दोनों भाई, कुबेर और ज्ञानी, गुब्बारे को ऊपर से नीचे लाकर खेलते थे। 


रात को उसकी डोर तख्त की टांग से बांधकर सो जाते तो गुब्बारा फिर पंखे के पास जाकर छत से चिपक जाता था। गुब्बारों के बाद उसका मोह जगा खेलने में। स्कूल में दोस्तों के साथ कबड्डी, फुटबॉल, टेबिल टेनिस और बेडमिंटन खेलता। मगर समस्या वही थी कि जैसे खिलौने अपने नहीं हुए, वैसे ही कभी रैकेट और शटल अपनी नहीं हुई।


 स्कूल की हर क्लास में कुबेर ऊपर तो चढ़ता गया मगर खेल-खिलौने उम्र के साथ दूर होते गए। स्कूल से कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक के सफर में कुछ पुराने दोस्त साथ भी रहे तो कुछ नए भी बने। इस बीच कुबेर और राधे बहुत अच्छे दोस्त बन गए। दोनों एक-दूसरे की अम्मा के हाथ का खाना खाया करते। वे दोनों साथ- साथ फिल्म देखने जाया करते और लौटते में दूध मंदिर पर रुककर कुल्हड़ में भरे गए मलाईदार गर्म दूध का सेवन करते थे।


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उम्र नहीं रुकती। उसके पिताजी रिटायरमेंट के नजदीक पहुंच रहे थे और अम्मा थकी-सी लगने लगी थी। कुबेर की पुरानी किताबों और नोट्स को पढ़ते-पढ़ते ज्ञानी भी कॉलेज पहुंच गया था। कैलेंडर वर्ष-दर-वर्ष बदलते गए। कुबेर-राधे. की दोस्ती कायम रही, भले ही वो अलग-अलग शहरों में नौकरी कर रहे थे और सही समय पर दोनों ने विवाह कर अपने-अपने घर बसा लिए थे। मगर जब वो मिलते तो कोई कह नहीं सकता था कि वे मात्र दोस्त हैं, बल्कि सगे भाइयों से भी बढ़कर हैं


अम्मा-पिताजी ने उसका नाम कुबेर क्यों रखा था, वह अक्सर सोचता था क्योंकि धन का खजाना उसके बैंक बैलेंस में नहीं था। प्राइवेट कंपनी की छोटी-सी नौकरी में तो इंक्रीमेंट भी मुश्किल से ही लगता है। उसकी ईमानदारी और वफादारी ही थी कि उसकी नौकरी पक्की-सी हो चली थी। कुबेर की पत्नी सुमेधा भी कहीं छोटी-मोटी नौकरी कर रही थी। तीन बच्चों, दो लड़कों और एक लड़की, की पढ़ाई खर्च बहुत धन मांगता था। उधर वहीं राधे एक मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे पद पर आसीन था और राजधानी में एक बड़े-से बंगले में रहता था। नौकर-चाकर, गाड़ियों की कमी नहीं थी।


पर समय किसी के लिए नहीं रुकता है। वह अविराम चलता है। राधे रिटायर होने के बाद अपने बेटे के साथ विदेश में जा बसा। कई वर्षों तक वे एक-दूसरे से पत्र-व्यवहार करते रहे। कुबेर के लिए विदेश की पोस्टल फीस भी बहुत महंगी पड़ती थी। धीरे-धीरे दोनों के मध्य फोन वार्ता और बाद में इंटरनेट आने के बाद जीमेल और याहू पर चैट हो जाती थी।


मगर वो क्रम भी ज्यादा आगे नहीं बढ़ा। नौकरी के आखिरी वर्ष में कुबेर ने एक बढ़िया टच स्क्रीन का मोबाइल खरीद लिया, जिस पर उसने व्हाट्सऐप, फेसबुक और ट्वीटर के जरिये बहुत सारे फ्रेंडस बना लिए। सस्ते डेटा ने उसकी साहित्यिक भावनाओं को भी उकेरा और संबल प्रदान किया। वह कविताएं और लघु कथाएं भी लिखकर शेयर करने लगा। वह सोशल मीडिया पर व्यस्त होने लगा। मोबाइल के कॉन्टैक्ट्स में भी नए-नए नाम जुड़ते गए। वह उन कॉन्टैक्ट्स को स्क्रॉल करता तो उसे लगता कि वो किसे फोन करें, क्योंकि सब उसे केवल नाम भर से ही जानते थे। जो दोस्त था, वह विदेश में था।


उच्च शिक्षा के लिए कुबेर के दोनों लड़के उपनगर छोड़ राजधानी चले गए और बाद में जीवन-यापन के लिए मॉल्स में कार्य करने लगे। उनकी आय उनके लिए ही काफी नहीं पड़ती थी तो अपने मम्मी-पापा को वो क्या भेजते ? होली- दिवाली के अवसर पर वे उपनगर आकर उन्हें संभाल भी लें तो काफी था। कुबेर और सुमेधा अकेले पड़ गए। शुरू में तो उन्हें लगा कि सोशल मीडिया से जुड़े फ्रेंड्स उनके साथ हैं। जोश में वह कभी किसी अपने समकालीन फ्रेंड को चैट के लिए व्हाट्सऐप पर हॉय /हेलो भी करता तो उसे रिस्पांस तो मिलता पर वह वार्ता आगे नहीं बढ़ती। 


एक-दूसरे से मिलना तो ऐसा लगता जैसे पृथ्वी और आकाश का क्षितिज पर मिलना हो । फेसबुक पर रोज अपनी और सुमेधा की नई-नई फोटो पोस्ट कर वह अपनी साधारण स्थिति को स्पेशल नहीं बना सकता था। उसे लगने लगा कि वह जब तक सोशल मीडिया पर फ्रेंड्स की पोस्ट्स को लाइक करता रहेगा, तब तक ही वो भीड़ का हिस्सा बना रहेगा, वरना वह खो जाएगा। 


आर्थिक अभाव से जीवन नीरस-सा हो चला था। वैचारिक विपन्नता ने भी घेर लिया था। आयु भी आगे-आगे चल कर उन दोनों को सजग कर रही थी। अचानक एक दिन चिकित्सकों ने कुबेर को ब्लड कैंसर से ग्रसित बता दिया। महंगा इलाज तो था ही, साथ ही आए दिन ताजे खून की जरूरत ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया। सोशल मीडिया पर की गई अपील का शुरू में तो थोड़ा-सा रिस्पांस मिला, मगर बाद में कई फ्रेंडस ने कुबेर सिंहानिया को अन-फ्रेंड कर दिया। दोनों बच्चे घर जरूर आते पर वो भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। 


महंगी बीमारी जो थी। स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव हो रहा था। कभी हॉस्पिटल के बेड पर दिन-रात गुजरते तो कभी कमरे के पंखों की स्पीड बढ़ाकर कुबेर दिन निकाल रहा था। बहुत दिनों से उसने मोबाइल को ऑन नहीं किया था। मोबाइल के चार्जर को प्लग-इन करते ही मोबाइल में जान आ गई। दो जीबी डेटा उपलब्ध था। कुबेर अंधाधुंध मैसेज-पर-मैसेज लिखता गया। उसने फ्रेंड्स की पोस्ट लाइक ही नहीं की, उन पर कमेंट भी करता रहा। अपनी बीमारी के बारे में ध्यान आकृष्ट करता रहा। मगर कुछ ही देर बाद वह अचेत हो गया।


जीवन में अंधकार तो था, पर सुबह के उजाले के साथ उसकी आंख अचानक खुली तो उसने पाया कि सुमेधा और दोनों बच्चे उसके बेड के निकट खड़े उसे देख रहे थे। पत्नी ने बेड के किनारे पड़े स्टूल पर बैठते हुए पति का हाथ अपने हाथ में ले लिया। शरीर में हलचल हुई तो उसकी नज़र सामने टंगी घड़ी पर गई और नीचे सरकी तो वह आंखें मलने लगा। उसका दोस्त राधे डॉक्टर के साथ खड़ा था। 


राधे ने लपककर लेटे हुए कुबेर को गले लगाया तो दोनों की आंखों से आंसू बह निकले। कुबेर के परिजनों की आंखें नम हो गईं, जब बताया गया कि राधे के साथ उनका बेटा डॉक्टर अभिमन्यु भी आया है और पूरे ट्रीटमेंट को वही मॉनिटर कर रहा है। इलाज तो लंबा चलेगा, पर अभी रिस्क नहीं है क्योंकि ब्लड ट्रांसफ्यूजन के साथ दूसरी थैरेपी भी नियमित साथ चलेंगी। 


'इतने बरस कहां था रे तू, राधे?' बिस्तर पर लेटे-लेटे ही उसने पूछा, 'कॉन्टेक्ट क्यों नहीं रखा ?"


 'तेरी भाभी के जाने के बाद अकेला हो गया था', राधे ने रुआंसे गले से कहा तो कुबेर-सुमेधा दोनों बोल पड़े, 'क्या कहा, भाभी नहीं रहीं, कैसे ?'


 'वो एक सुबह सोती की सोती रह गई। अभिमन्यु और उसकी डॉक्टर बहू भी देखते रह गए। विदेश में सब कुछ था, पर अपनापन नहीं था। तय किया कि अपने इस उपनगर में तेरे साथ रहूंगा। फिर यहां आया तो तेरी बीमारी के बारे में पता चला। अब नए सिरे से जिएंगे उम्र के इस पड़ाव को । तू जल्दी से ठीक हो जा, सब साथ रहेंगे। चलेगा ना ?' राधे ने पूछा तो कोई कुछ नहीं बोल पाया और नजर बचाकर आंखों की कोरों को पोंछते रहे।


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