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उपकार- Upkar Short Moral Story in Hindi | उपकार दिल छू लेने वाली लघुकथा

Short Moral Stories: एक चिट्ठी लेकर वे बुजुर्ग आए थे और एक चिट्ठी रमाशंकर ने उनके हाथ भेजी थी। इन दोनों के बीच भरपूर विस्तार से जो विद्यमान था, वह था ढेर सारा विश्वास, स्नेह और आशीर्वचनों की तृषा।

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उपकार- Upkar Short Moral Story in Hindi

Hindi Kahani: घटना कुछ दशक पुरानी है। रमाशंकर की कार जैसे ही सोसायटी के गेट से घुसी, गार्ड ने उन्हें रोककर कहा, 'साहब, ये महाशय आपके नाम और पते की चिट्ठी लेकर न जाने कब से भटक रहे हैं।' रमाशंकर ने चिट्ठी लेकर देखा, नाम और पता तो उन्हीं का

था, पर जब उन्होंने चिट्ठी लाने वाले की ओर देखा तो उसे पहचान नहीं पाए। चिट्ठी एक बहुत थके-से बुजुर्ग लेकर आए थे। उनके साथ बीमार-सा एक लड़का भी था। उन्हें देखकर रमाशंकर को तरस आ गया। शायद बहुत देर से वे घर तलाश रहे थे। उन्हें अपने घर लेकर आए। बोले, 'पहले तो आप बैठ जाइए।' इसके बाद नौकर को आवाज लगाई, 'रामू इन्हें पानी लाकर दो।'

पानी पीकर बुजुर्ग ने थोड़ी राहत महसूस की तो रमाशंकर ने पूछा, 'अब बताइए किससे मिलना है?"

'तुम्हारे बाबा देवकुमार जी ने भेजा है। बहुत दयालु हैं वे । मेरे इस बच्चे की हालत बहुत ख़राब है। गांव में इलाज नहीं हो पा रहा था। किसी सरकारी अस्पताल में इसे भर्ती करवा दो बेटा, जान बच जाए इसकी । इकलौता बच्चा है।' इतना कहते-कहते बुजुर्ग का गला रुंध गया। 

रमाशंकर ने उन्हें गेस्टरूम में ठहराया। पत्नी से कहकर खाने का इंतजाम कराया। अगले दिन फैमिली डॉक्टर को बुलाकर सारी जांच करवाने के बाद इलाज शुरू करवा दिया। बुजुर्ग कहते रहे कि किसी सरकारी अस्पताल में करवा कर दो, पर रमाशंकर ने उनकी एक नहीं सुनी। बच्चे का पूरा इलाज अच्छी तरह करवा दिया।

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बच्चे के ठीक होने पर बुजुर्ग गांव जाने लगे तो रमाशंकर को तमाम दुआएं दीं। रमाशंकर ने दिलासा देते हुए एक चिट्ठी देकर कहा, 'इसे पिताजी को दे दीजिएगा।'

गांव पहुंचकर देवकुमारजी को वह चिठ्ठी देकर बुजुर्ग बहुत तारीफ़ करने लगे, 'आपका बेटा तो देवता है। कितना ध्यान रखा हमारा। अपने घर में रखकर इलाज करवाया।'

देवकुमार चिट्ठी पढ़कर दंग रह गए। उसमें लिखा था, 'अब आपका बेटा इस पते पर नहीं रहता। कुछ समय पहले ही मैं यहां रहने आया हूं। पर मुझे भी आप अपना ही बेटा समझें। इनसे कुछ मत कहिएगा। आपकी वजह से मुझे इन अतिथि देवता से जितना आशीर्वाद और दुआएं मिली हैं, उस उपकार के लिए मैं आपका सदैव आभारी रहूंगा।

-आपका रमाशंकर । '

में देवकुमार जहां अपने बेटे के नए ठिकाने को लेकर चिंता पड़ गए, वहीं रमाशंकर के लिए नए स्नेह से भरकर सोचने लगे, 'आज भी दुनिया में इस तरह के लोग हैं क्या ?'

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