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मंडप के नीचे: Short Story in Hindi | Mandap Ke Niche Short Kahani

मंडप के नीचे Short Story in Hindi: बात 4-5 वर्ष पुरानी है. मेरे देवर की शादी थी . रस्मानुसार उन की साली ने दूल्हे के जूते चुराए और वापस देने के लिए 1,001 रुपए मांगने लगी .


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काफी देर तक नोकझोंक चली. मेरे ननदोई ने लड़की को चिढ़ाते हुए कहा, "हम तो सवा रुपया नेग का देंगे. जूते लौटाने हैं तो लौटाओ वरना तुम्हारे जीजा को नंगे पांव घर तक ले जाएंगे ." 


बात जीजाजी की इज्जत की थी. साली साहिबा तुरंत बोली, " निकालिए सवा रुपए, लेकिन इसी मंडप के नीचे, बाहर कोई नहीं जाएगा वरना मांगी गई रकम 4 हजार रुपए हो जाएगी ." 


ननदोई अपने ही जाल में फंस गए. उस वक्त किसी भी बराती के पास 25 पैसे का सिक्का नहीं निकला. हार कर हम सालियों को 2,001 रुपए देने पड़े . -


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बात पिछले वर्ष की है . मैं अपनी मामी के घर रुड़की गई थी. उन्हें अगले दिन किसी के यहां लड़की के विवाह में शामिल होने जाना था . उन के साथ मैं भी वहां गई . 

घर का पूरा माहौल रंगीन था . थोड़ी देर बाद पता चला कि बरात चल चुकी थी पर रास्ते में वर के पांव में काफी चोट लग गई . तुरंत अस्पताल ले जाया गया .


वर पक्ष के लोगों ने विवाह को स्थगित करने का फैसला कर लिया . 


परंतु वधू को जब यह बात पता चली तो उस ने कहा कि विवाह आज ही होगा. उस की जिद की वजह से प्राथमिक उपचार के बाद बरात द्वार पर आ गई .


सभी मांगलिक कार्यक्रमों के बाद फेरों की रस्म वरवधू को कार में बैठा कर पूरी हो गई . 


इस अनूठे मगर प्रेरक विवाह को देखने के लिए काफी लोग एकत्रित हुए . ठीक ही है कि जब मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी . 

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मेरी और मेरी सहेली भावना में इतनी बनती है कि हमें 2 जिस्म और 1 जान भी कहें तो कम होगा . खाना, पहनना, घूमना तो क्या किसी बात में कोई लुकावछिपाव नहीं है . 


हां, फर्क है तो बस यह, मैं थोड़ी शर्मीली हूं और भावना मुंहफट 


जब घर में शादी को लेकर चर्चा होती तो हम दोनों परेशान हो जाती. यहां तक कि कभीकभी तो हम आपस में ही शादी कर के इकट्ठा रहने की योजना बनातीं . 


पर इन सब बातों को नजरअंदाज करते हुए मेरे घर वालों ने मेरी शादी तय कर दी . 


रस्म के अनुसार दरवाजे पर लगी छलनी उतार कर दूल्हा दुलहन के कमरे में आता है, जहां वह अपनी सहेलियों व रिश्तेदारों से घिरी बैठी होती है. यहां दूल्हा अपने भाइयों व दोस्तों व के साथ आता है व छंद सुनाता है. फिर सब रिश्तेदार उसे प्रत्येक छंद बोलने पर नेग देते हैं. दूल्हे मियां ने पहला छंद बोलाः 


"छंद परागे आइए जाइए छंद दे अगे छोले, अगला छंद मैं तां बोलांगा पहले दुलहन मेरे साथ बोले ."


 सभी ठहाके लगा कर हंसने लगे और दुलहन ( मुझे ) को भी बोलने के लिए कहने लगे. 


अब भावना बोली, "जीजाजी, दुलहन को तो सारी उम्र बोलना है , साली भी आधी घरवाली होती है. इसलिए आओ, हम खूब बातें करेंगे ."


देवरजी ने ऊंची उत्तेजित आवाज में कहा, "डार्लिंग, तुम्हारे साथसाथ तुम्हारा यह अंदाज भी मुझे भा गया है. आओ, हम खूब बातें करें ." 


भावना भी कौन सी कम थी, चल दी साथ. जनाब 2 घंटे बाद वापस आए और कह दिया कि हम भी शादी करेंगे और अभी आज ही . भावना कुछ महीने बड़ी भी थी परंतु अंधा प्यार यह नहीं जानता .


 इत्तफाक की बात है कि दोनों के घर वालों ने भी शादी करना मंजूर कर लिया. इस तरह विदा हुई दोनों सहेलियां एक ही दिन, एक ही घर में, सच, दोनों उदाहरण बन गईं सच्चे प्यार की . -


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बात मेरी चचेरी बहन की शादी की है. उस समय मैं 9 वीं कक्षा में पढ़ती थी. काफी छोटी होने के कारण मुझे जीजासाली के मजाकिए रिश्ते की भी जानकारी नहीं थी . 


जब जयमाला की रस्म हो गई, तो जीजाजी ने बातबात में मुझ से मजाक करना शुरू कर दिया . लेकिन मैं जवाब न दे पाने के कारण सिर्फ मुसकरा देती थी . 


जब काफी देर तक वह मुझे छेड़ते रहे, तब मुझ से नहीं रहा गया और मैं ने तपाक से कह दिया, "आप क्या मुझ से मजाक करते हैं, आप तो मेरे बाप के समान हैं ." 


इतना सुनते ही वहां बैठी मेरी सहेलियां ठहाके लगाने लगी . 


अभी भी जब मेरी मुलाकात जीजाजी से होती है, तो वह मुझे छेड़ते हुए कहते हैं, "बेटी, क्या हालचाल हैं?" 


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मेरे घर की काम वाली की बेटी असल में कीचड़ में खिला कमल थी, सुंदर, सुशील एवं बेहद कुशाग्र बुद्धि वाली. वह मुझे दीदी कह कर पुकारती और मैं भी उसे अपनी बहन समान प्यार करती. मेरे विवाह के अवसर पर अतिथियों का स्वागत करने, घरप्रबंधन में मां की सहायता करने तथा मेरे पति का आत्मीय आदरसत्कार करने में वह मेरी बहनों से कहीं आगे थी . 

मेरे पति भी उस के प्रभावशाली व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सके .


विवाह हो चुकने के बाद मेरी दोनों बहनों ने मेरे पति से कहा कि जीजाश्री, जूते वापस पाने के लिए हम दोनों बहनों को 1-1 हजार रुपए देने पड़ेंगे . 


बहनों की मांग सुन कर मैं क्षुब्ध हो गई पर मेरे पति तपाक से बोले, "कहो, दोनों को नहीं, तीनों को 1-1 हजार रुपए देने होंगे . मेरी 2 नहीं 3 सालियां हैं .' 


और तुरंत 3 हजार रुपए निकाल कर दे दिए . 


सभी अतिथियों ने कहा कि दामाद हो तो ऐसा. मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो गया . -


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