नेहा ने सोती दिव्या के सिर पर हाथ फिराया और कहा, “तुझे हक है, बेटा।” फिर मन ही मन बोली, 'मुझे गर्व है कि तुम मेरी बेटी हो!
ख्वाहिशों को मेरी उड़ान चाहिए,
उड़ने को खुला आसमान चाहिए ।
बेड़ियां मत डालो बेटी समझ कर,
आजादी हो जहां ऐसा जहान चाहिए ।
स्टोरी- नन्दिनी रस्तोगी '
नेहा को नींद नहीं आ रही थी। वह सबको सोता देख रही थी और फिर दिव्या के बारे में सोचने लगी, ' यह शुरू से ही चुलबुली है। अपना परिचय तो इसने जन्म के तुरंत बाद ही दे दिया था। जब इसके ताऊ जी ने कान के पास चुटकी बजाई तो इसने उधर ही निगाह घुमाई थी।
गोरी चिट्टी, गोल-मटोल, सभी को अपने वश में करने में वाली अपनी तोतली भाषा में जब यह बोलती,"तटोड़ी में पतोड़ी थानी है, तो सब इसके होकर रह जाते। अपने पापा के लिए तो यह बहुत ही भाग्यवान है। उनके घर में बरकत उस दिन से ही शुरू हुई, जिस दिन इसका जन्म हुआ।'
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धीरे-धीरे बड़ी होती दिव्या ने अपने पापा की जिम्मेदारी संभाल ली। वह सर्विस पर जाने लगी। बिजली के बिल से लेकर घर और बाहर के सभी काम करने लगी। अपनी जिद के कारण उसने पुराने मकान को तोड़कर नए सिरे से बनवाया। अब उसे घर में एसी लगवाना था। दिन रात मां के चारो ओर घूम घूमकर उनका सिर खाना, यह तो उसकी बचपन की आदत थी। जब तक ' हां ' न बुलवा ले, उसे चैन नहीं मिलता। माँ ने कहा " बेटा, बिजली का बिल अधिक आएगा।
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वह बोली, "समझ लो, मेरी सैलरी नहीं बढ़ी। "मां ने कहा, "कूलर में तो तुम चादर ओढ़ के सोती हो?"
वह बोली, "वह तो मच्छर की वजह से सोते हैं।"
"एसी तो बहुत महंगा आता है!"
"जीरो परसेंट ईएमआई पर लेंगे। महंगा कहीं भी नहीं है।" उसके पास हर बात का जवाब था। आखिर में मां ने हामी भर ही दी। क्यों भरी, दिव्या यह नहीं जानती थी। उसकी एक बात मां के दिल को लग गई थी कि आज भी अपने हक के लिए बेटियों को लड़ना पड़ता है। तब मां ने सोचा, 'उसका घर है। वह चाहे जो कराए।
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एसी ही तो लगवा रही है, कोई गलत काम तो नहीं कर रही। 'यह सोचकर मां ने हंसते हुए स्वीकृति दे दी और उनके घर एसी लग गया। आज पूरा परिवार अलग-अलग कमरों में नहीं, एक साथ सो रहा था एसी के कारण या दिव्या की समझदारी के कारण। नेहा ने सोती हुई दिव्या के सिर पर हाथ फिराया और कहा, "तुझे हक है, बेटा।" फिर मन ही मन बोली, 'मुझे गर्व है कि तुम मेरी बेटी हो!"
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