मूल अधिकार Fundamental Rightsक्या है | Mul Adhikar के प्रकार विस्तार से समझाइए
Mul Adhikar Kya Hai:- "लोगों के जीवन जीने के लिए आवश्यक अधिकारों को मूल अधिकार या मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) कहते है। "मौलिक अधिकार को संविधान का 'महाधिकार-पत्र (MagnaCarta)' कहा जाता है। हर किसी देश ने अपने नागरिकों को लिखित या मौखिकः तौर पर मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) दिया गया है।
हमारे देश भारत में मौलिक अधिकार अमेरिका से लिया गया है। फंडामेंटल राइट्स हक़ देता है की " राज्य सरकारें प्रत्येक नागरिकों के मौलिक अधिकारों से हस्तछेप नहीं कर सकते "ये विधायिका की और कार्यपालिका शक्तियों को मर्यादित करते हैं। भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है।
ये संवैधानिक अधिकार मौलिक हैं, क्योंकि इन्हें न्यायिक संरक्षण प्राप्त है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो वह न्यायालय की शरण ले सकता है। संविधान के आरम्भिक काल में भारत के नागरिकों को सात प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त थे। 'सम्पत्ति का अधिकार' को 44 वें संविधान संशोधन ( 1978 ) के द्वारा निरसित कर दिया गया।
"कराची अधिवेशन 1931 में कराची अधिवेशन ( अध्यक्ष सरदार उल्लभभाई पटेल ) में कांग्रेस ने घोषणा पत्र में मूल अधिकारों की माँग की। मूल अधिकारों का प्रारूप जवाहरलाल नेहरू ने बनाया था।"
मौलिक/मूल अधिकार के प्रकार (Types of Fundamental Rights in Hindi)
भारतीय संविधान के तृतीय भाग में मूल अधिकारों के सम्बन्घ में कुल 23 अनुच्छेद (अनुच्छेद 12 से 30 और 32 से 35 ) है। वर्तमान में भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित छः प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त हैं।
- समता का अधिकार
- स्वतन्त्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
- संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
1. समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 )
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 के अन्तर्गत भारतीय नागरिकों को समता का अधिकार प्राप्त है।
- अनुच्छेद 14 के तहत भारत के सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समान अधिकार प्राप्त है अर्थात राज्य सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का प्रावधान करेगा और उसी तरह समान रूप से उसे लागू भी करेगा।
- अनुच्छेद 15 के तहत किसी भी भारतीय नागरिक के साथ राज्य धर्म, जाति, लिंग, नस्ल या जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
- अनुच्छेद 16 के तहत भारत के सभी नागरिकों को राज्य के अधीन किसी भी पद पर नियुक्ति के लिए उपलब्ध समान अवसर की प्राप्ति का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता का अन्त कर दिया गया है। यदि कोई इसे अपने जीवन में अपनाता है या ऐसी भावना प्रकट करता है तो उसे दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है।
- अनुच्छेद 18 के तहत भारत का कोई भी नागरिक राष्ट्रपति की आज्ञा के बिना किसी अन्य देश से किसी भी प्रकार की उपाधि स्वीकार नहीं करेगा। सेना या अकादमिक सम्मान के सिवाय राज्य अन्य किसी भी उपाधि का प्रावधान नहीं करेगा, क्योंकि उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है।
2. स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22 )
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 भारतीयों के लिए स्वतन्त्रता के अधिकार का प्रावधान करते हैं।
अनुच्छेद 19 सभी भारतीय नागरिकों को विविध प्रकार की विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान करता है, जो क्रमवार है-
- 19 ( A ) विचार अभिव्यक्ति एवं प्रेस की स्वतन्त्रता। सूचना पाने की स्वतन्त्रता।
- 19 ( B ) शान्तिपूर्वक बिना शस्त्र के एकत्रित होने और सभा या सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता।
- 19 ( C ) किसी भी प्रकार के संघ बनाने की स्वतन्त्रता।
- 19 ( D ) देश के किसी भी भू-भाग में आवागमन की स्वतन्त्रता।
- 19 ( E ) निवास की स्वतन्त्रता
- 19 ( F ) व्यापार व्यवसाय , रोजगार की स्वतन्त्रता।
अनुच्छेद 20 भारतीय नागरिकों को अपराधों के लिए दोष-सिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण प्रदान करता है, जैसे-
- ( i ) किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी।
- ( ii ) अपराधी को केवल तत्क कानूनी उपबन्ध के तहत सजा मिलेगी।
- ( ii ) किसी भी नागरिक को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 21 भारतीय नागरिकों के जीवन एवं शारीरिक स्वतन्त्रता का संरक्षण करता है। इसके तहत किसी भी भारतीय नागरिक को कानून द्वारा निर्मित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतन्त्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 21 ( क ) राज्य 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगा ( 86 वाँ संविधान संशोधन , 2002 )।
अनुच्छेद 22 कुछ स्थितियों में भारतीय नागरिक की गिरफ्तारी और निरोध में संरक्षण प्रदान करता है, जैसे -
- यदि किसी नागरिक को मनमाने तरीके से हिरासत में लिया गया है तो उसे हिरासत में लेने का कारण बताना होगा।
- हिरासत में लिए गए नागरिक को 24 घण्टों के अन्दर ( आवागमन का समय छोड़कर ) निश्चित दण्डाधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा।
- हिरासत में लिए गए व्यक्ति को अपने पसन्द के अधिवक्ता से सलाह लेने का अधिकार होगा।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार(अनुच्छेद 23 और 24 )
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 भारतीय नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान करते हैं।
- अनुच्छेद 23 में मानव के दुर्व्यापार और बलात श्रम का प्रतिषेध किया गया है। ऐसा करना दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है।
- अनुच्छेद 24 में 14 वर्ष से कम आय वाले किसी बच्चे को कारखानों, खनन क्षेत्रों या अन्य किसी भी प्रकार के जोखिम भरे कार्य पर नियुक्त करना दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है।
4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतन्त्रता का प्रावधान करते हैं।
- अनुच्छेद 25 के अन्तर्गत भारतीय नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने तथा उसका प्रचार-प्रसार करने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है।
- अनुच्छेद 26 भारतीय नागरिकों को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना करने, संचालन करने तथा विधि सम्मत सम्पत्ति अर्जन करने, स्वामित्व रखने तथा नियन्त्रण का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 27 के अन्तर्गत राज्य किसी भी नागरिक को, जिसकी आय, किसी भी धर्म या धार्मिक सम्प्रदाय की प्रगति में व्यय के लिए निश्चित कर दी गई है, उसे ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद 28 के अन्तर्गत राज्य-विधि से पूर्ण रूप से संचालित किसी शिक्षण संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। इस प्रकार का कोई शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोपदेश को बलपूर्वक सुनने के लिए बाध्य नहीं करेगा।
5. संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार(अनुच्छेद 29 और 30)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 भारतीय नागरिकों के लिए संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकारों का प्रावधान करते हैं।
- अनुच्छेद 29 ( 1 ) भारत के नागरिकों को जिनकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का उन्हें पूरा अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 29 ( 2 ) किसी भी नागरिक को, भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जा सकेगा।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
डॉ. अम्बेडकर की मान्यता थी कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 संविधान का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रावधान है, इसके बिना संविधान अधूरा है। उनके अनुसार संवैधानिक उपचारों का अधिकार संविधान की आत्मा एवं हृदय है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 सर्वोच्च न्यायालय को भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का संरक्षक निर्धारित करता है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो वह सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। मूल अधिकारों की रक्षा हेतु सर्वोच्च एवं न्यायालय पांच प्रकार की रिट जारी कर सकते है
परमाधिकार रिटें (Prerogative Writs in Hindi)
सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए ' रिट ' ( याचिका ) जारी करने का अधिकार प्राप्त है। परमाधिकार रिटें ब्रिटेन के सामान्य कानून की अभिव्यक्ति हैं,जो इस प्रकार है -
- बन्दी प्रत्यक्षीकरण
- उत्प्रेषण
- परमादेश
- प्रतिषेध
- अधिकार पृच्छा (query of rights )
1 .बन्दी प्रत्यक्षीकरण
जब किसी नागरिक को अवैध रूप से बन्दी बनाया जाता है तो उसे यह अधिकार है कि वह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय की शरण ले। सर्वोच्च न्यायालय उस बन्दी बनाने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बन्दी बनाए गए व्यक्ति को 24 घण्टे के अन्दर न्यायालय के समक्ष पेश करे, जिससे बन्दी बनाए जाने के औचित्य की जाँच की जा सके।
2. उत्प्रेषण
यह लेख सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को जारी किया जाता है। यह आदेश दिया जाता है कि किसी लम्बित मुकदमे के न्याय निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजा जाए।
3. परमादेश
यह लेख उस पदाधिकारी को जारी किया जाता है, जो अपने सार्वजनिक कर्त्तव्य से विमुख हो गया है। जिससे वह अपने कर्त्तव्य का पालन करे।
4. अधिकार पृच्छा
यह लेख सर्वोच्च या उच्च न्यायालय द्वारा, उसे जारी किया जाता है जो ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है, जिस रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं होता है। न्यायालय इस लेख के माध्यम से उस व्यक्ति से पूछता है कि किस अधिकार से वह कार्य कर रहा है।
5. प्रतिषेध
यह लेख सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को जारी किया जाता है। इस लेख के माध्यम से शीर्ष न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय को उसके क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर किसी भी मामले पर कार्यवाही करने से रोकता है । जिससे किसी नागरिक के साथ अन्याय न हो।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 संविधान का आधारभूत लक्षण है। संविधान में संशोधन कर इसे निरसित नहीं किया जा सकता।
- कोई व्यथित नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि पहले वह उच्च न्यायालय का द्वार खटखटाए।
- अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों के हनन होने के अलावा भी उच्च न्यायालय ' रिट ' जारी कर सकता है।
मौलिक अधिकारों का निलम्बन (suspension of fundamental rights in Hindi)
मौलिक अधिकार असीम नहीं हैं। विशेष स्थिति या आपातकाल में इन्हें सीमित किया जा सकता है। कारण स्पष्ट है कि नागरिक अधिकार चाहे कितने ही आधारभूत क्यों न हों, देश की सुरक्षा और जन कल्याण से ऊपर नहीं हो सकते। अतः यदि आपातकाल की घोषणा की जाती है, तो राष्ट्रपति किसी एक या समस्त मौलिक अधिकारों को निलम्बित कर सकता है। किन्तु अनुच्छेद 20 ( अपराधों के लिए दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण ) तथा अनुच्छेद 21 ( जीवन व शारीरिक स्वतन्त्रता का संरक्षण ) आपातकाल के दौरान भी निलम्बित नहीं किए जा सकते।
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